शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का अन्तिम सन्देश

अब तो मेरी यही राय है कि अंग्रेज़ी अदालत के आगे न तो कोई बयान दे और न ही कोई सफ़ाई पेश करे। अपील करने के पीछे एक कारण यह भी था कि फाँसी की तारीख़ बदलवाकर मैं एक बार देशवासियों की सहायता और नवयुवकों का दम देखूँ। इसमें मुझे बहुत निराशा हुई। मैंने निश्चय किया था कि सम्भव हो तो जेल से भाग जाऊँ। यदि ऐसा हो सकता तो बाक़ी तीनों की मौत की सज़ा भी माफ़ हो जाती।

शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का पत्र

आज मुझे सुपरिण्टेण्डेण्ट ने बताया कि वायसराय ने मेरी रहम की दरख़्वास्त नामंज़ूर कर दी है। जेल के नियमों के अनुसार मुझे एक सप्ताह के भीतर फाँसी पर चढ़ाया जायेगा। तुम्हें मेरे लिए अफ़सोस नहीं करना चाहिए क्योंकि मैं अपना पुराना शरीर छोड़कर नया जन्म धारण कर रहा हूँ। आपको यहाँ आकर मुलाक़ात करने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि कुछ दिन पहले ही आप मुलाक़ात कर चुके हो। जब मैं लखनऊ में था तो बहिन ने दो बार मुलाक़ात की थी। सभी को मेरी ओर से प्रणाम और लड़कों को प्यार।

गाँधीजी के नाम शचीन्द्रनाथ सान्याल का खुला पत्र

मैं समझता हूँ कि यह मेरा दायित्व है कि मैं आपको उस वादे की याद दिलाऊँ जिसे कि आपने कुछ समय पहले किया था कि जब क्रान्तिकारी एक बार फिर अपनी चुप्पी तोड़कर भारतीय राजनीति के क्षेत्र में दाख़िल होंगे तो आप राजनीति के क्षेत्र से संन्यास ले लेंगे।। अहिंसावादी असहयोग आन्दोलन का प्रयोग अब ख़त्म हो चुका है। आप अपने प्रयोग के लिए पूरा एक साल चाहते थे, लेकिन प्रयोग अगर पाँच नहीं तो कम से कम पूरे चार सालों तक चला, और क्या अभी भी आप यह कहना चाहते हैं कि यह काफ़ी लम्बे समय तक नहीं चला है?

हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का संविधान

ज़िला संगठनकर्ता यह सुनिश्चित करेगा कि सदस्यगण अलग-अलग समूहों में विभाजित हों और विभिन्न समूहों को एक-दूसरे के बारे में जानकारी न हो। जहाँ तक सम्भव है कि किसी भी प्रान्त के ज़िला संगठनकर्ता एक-दूसरे की गतिविधियों से अवगत न हों, उन्हें एक-दूसरे को व्यक्तिगत रूप से या नाम से भी नहीं जानना चाहिए। कोई भी ज़िला संगठनकर्ता अपने से बड़े अधिकारी को सूचना दिये बग़ैर अपनी जगह को नहीं छोड़ेगा।

दि रिवोल्यूशनरी – हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का घोषणापत्र

“नये तारे के जन्म के लिए उथल-पुथल ज़रूरी है।” और जीवन पीड़ा और व्यथा के साथ जन्म लेता है। हिन्दुस्तान का भी एक नया जन्म हो रहा है और यह उस उथल-पुथल और पीड़ा के दौर से गुज़र रहा है जिससे बचा नहीं जा सकता है। हिन्दुस्तानी जन अपनी नियत भूमिका अदा करेंगे और तब सारे अनुमान बेकार सिद्ध होंगे, सीधे-सादे और कमज़ोर लोगों से होशियारों और ताक़तवरों के हाथ-पैर फूल जायेंगे, विशाल साम्राज्य चकनाचूर हो जायेंगे और नये राष्ट्रों का उदय होगा जो अपनी शान और महिमा से मानवता को स्तब्ध कर देंगे।

भगतसिंह – युद्ध अभी जारी है…

निकट भविष्य में अन्तिम युद्ध लड़ा जायेगा और यह युद्ध निर्णायक होगा। साम्राज्यवाद व पूँजीवाद कुछ दिनों के मेहमान हैं। यही वह लड़ाई है जिसमें हमने प्रत्यक्ष रूप में भाग लिया है और हम अपने पर गर्व करते हैं कि इस युद्ध को न तो हमने प्रारम्भ ही किया है और न यह हमारे जीवन के साथ समाप्त ही होगा।

भगतसिंह – क्रान्तिकारी कार्यक्रम का मसविदा

साम्राज्यवादियों को गद्दी से उतारने के लिए भारत का एकमात्र हथियार श्रमिक क्रान्ति है। कोई और चीज इस उद्देश्य को पूरा नहीं कर सकती। सभी विचारों वाले राष्ट्रवादी एक उद्देश्य पर सहमत हैं कि साम्राज्यवादियों से आजादी हासिल हो। पर उन्हें यह समझाने की भी जरूरत है कि उनके आन्दोलन की चालक शक्ति विद्रोही जनता है और उसकी जुझारू कार्रवाईयों से ही सफलता हासिल होगी। चूँकि इसका सरल समाधान नहीं हो सकता, इसलिए स्वयं को छलकर वे उस ओर लपकते हैं, जिसे वे आरजी इलाज, लेकिन झटपट और प्रभावशाली मानते हैं — अर्थात् चन्द सैकड़े दृढ़ आदर्शवादी राष्ट्रवादियों के सशक्त विद्रोह के जरिए विदेशी शासन को पलटकर राज्य का समाजवादी रास्ते पर पुनर्गठन। उन्हें समय की वास्तविकता में झाँककर देखना चाहिए।

भगतसिंह – ‘ड्रीमलैण्ड’ की भूमिका

आइये, इस बात की व्याख्या करें कि ऊपर उद्धृत बयान का क्या मतलब है? किसी अन्य व्यक्ति की अपेक्षा क्रान्तिकारी इस बात को ज़्यादा अच्छी तरह समझते हैं कि समाजवादी समाज की स्थापना हिंसात्मक साधनों से नहीं हो सकती है बल्कि उसे अन्दर से प्रस्फुटित और विकसित होना चाहिए। लेखक इसके लिए एकमात्र अस्त्र के रूप में शिक्षा को अपनाने का सुझाव देता है। लेकिन हर आदमी इस बात को आसानी से समझ सकता है कि यहाँ की वर्तमान सरकार और दरअसल सभी पूँजीवादी सरकारें न केवल ऐसे प्रयासों की सहायता नहीं करेंगी बल्कि इसके विपरीत निर्दयतापूर्वक इसका दमन करेंगी। तब उसके ‘क्रमिक विकास’ से क्या उपलब्धि होगी? हम क्रान्तिकारी लोग सत्ता पर अधिकार करने और एक क्रान्तिकारी सरकार के गठन का प्रयास कर रहे है, जो जन-शिक्षा के लिए अपने सभी साधनों का इस्तेमाल करेगी जैसाकि आज रूस में हो रहा है।

भगतसिंह – मैं नास्तिक क्यों हूँ?

प्रगति के समर्थक प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य है कि वह पुराने विश्वास से सम्बन्धित हर बात की आलोचना करे, उसमें अविश्वास करे और उसे चुनौती दे। प्रचलित विश्वास की एक-एक बात के हर कोने-अन्तरे की विवेकपूर्ण जाँच-पड़ताल उसे करनी होगी। यदि कोई विवेकपूर्ण ढंग से पर्याप्त सोच-विचार के बाद किसी सिद्धान्त या दर्शन में विश्वास करता है तो उसके विश्वास का स्वागत है। उसकी तर्क-पद्धति भ्रान्तिपूर्ण, ग़लत, पथ-भ्रष्ट और कदाचित हेत्वाभासी हो सकती है, लेकिन ऐसा आदमी सुधरकर सही रास्ते पर आ सकता है, क्योंकि विवेक का ध्रुवतारा सही रास्ता बनाता हुआ उसके जीवन में चमकता रहता है। मगर कोरा विश्वास और अन्धविश्वास ख़तरनाक होता है। क्योंकि वह दिमाग़ को कुन्द करता है और आदमी को प्रतिक्रियावादी बना देता है।

भगतसिंह – भारतीय क्रान्ति का आदर्श

भगतसिंह क्रान्ति के वैचारिक प्रश्नों पर निरन्तर अध्ययन-मनन कर रहे थे। वह बड़े व्यवस्थित ढंग से नोट्स लेते थे और अपने चिन्तन को तरतीब देने का काम करते रहते थे। उनकी जेल नोटबुक इस बात का ठोस प्रमाण है। नीचे दिया गया दस्तावेज़ भी इसका साक्ष्य है। यह एक टिप्पणी की शक्ल में है जिसे अदालत में पेश किया गया था।