भगतसिह – दस मई का शुभ दिन

इस बात का ख़याल करके स्वतन्त्र व्यक्तियों को शर्म आयेगी कि वे लोग भी, जिनके बुज़ुर्ग इस जंग में लड़े थे, जिन्होंने हिन्दुस्तान की आज़ादी की बाज़ी पर सबकुछ लगा दिया था और जिन्हें इस पर गर्व होना चाहिए था, वे भी, इस जंग को आज़ादी की जंग कहने से डरते हैं। कारण यह कि अंग्रेज़ी अत्याचार ने उन्हें इस क़दर दबा दिया था कि वे सर छुपाकर ही दिन काटते थे। इसलिए उन बुज़ुर्गों की यादगार मनानी या स्थापित करनी तो दूर, उनका नाम लेना भी गुनाह समझा जाता था।

भगतसिह – श्री मदनलाल ढींगरा

ऐसे विचित्र विद्रोही जीव जो पूरे विश्व से टकरा जाते हैं और स्वयं को जलती आग में झोक देते हैं, अपना ऐशो-आराम सब भूल जाते हैं और दुनिया की सुन्दरता, शृंगार में कुछ वृद्धि कर देते हैं और उनके बलिदानों से ही विश्व में कुछ प्रगति होती है। ऐसे ही वीर हर देश में हर समय होते हैं। हिन्दुस्तान में भी यही पूजनीय देवते जन्म लेते रहे हैं, ले रहे हैं और लेते रहेंगे। हिन्दुस्तान में से भी पंजाब ने ऐसे रत्न अधिक दिये हैं, बीसवीं शती के ऐसे ही सबसे पहले शहीद श्री मदनलाल जी ढींगरा हैं।

भगतसिह – चित्र-परिचय

एक तो इटली के नवयुवकों का – प्रत्येक बालक मुसोलिनी बनने का प्रयत्न कर रहा है। भारत में भी चार दिन के लिए स्काउट दल, महावीर दल और स्वयं-सेवक दल बने थे, अखाड़े स्थापित हुए थे परन्तु वह सब दूध का उफान रहा। नेताओं को चाहिए कि कौंसिलों में स्पीचें झाड़ने की अपेक्षा इन भावी नेताओं को कुछ बनायें।

भगतसिह – सम्पादक ‘महारथी’ के नाम पत्र

चित्रों के बग़ैर इन लेखों की महानता कम हो जाती है। बाक़ी, लेख जो जल्दी ही आपकी सेवा में भेजूँगा, सचित्र ही छपने चाहिए। बहुतों के तो ब्लॉक बने हुए ही मिल सकेंगे। उनका डाक ख़र्च व कुछ माया ही देनी होगी। यदि आप उचित समझो तो लिखें, मैं प्रबन्ध करवा दूँगा।

भगतसिंह – कूका विद्रोह: दो

पंजाब में सबसे पहली पोलिटिकल हलचल कूका आन्दोलन से शुरू होती है। वैसे तो वह आन्दोलन साम्प्रदायिक-सा नज़र आता है, लेकिन ज़रा ग़ौर से देखें तो वह बड़ा भारी पोलिटिकल आन्दोलन था, जिसमें धर्म भी मिला हुआ था, जिस तरह कि सिक्ख आन्दोलन में पहले धर्म और राजनीति मिली-जुली थी। ख़ैर, हम देखते हैं कि हमारी आपस की साम्प्रदायिकता और तंगदिली का यही परिणाम निकलता है कि हम अपने बड़े-बड़े महापुरुषों को इस तरह भूल जाते हैं जैसेकि वे हुए ही न हों।

भगतसिंह – कूका विद्रोह: एक

कूका आन्दोलन का इतिहास, आज तक लोगों के सामने नहीं आया। किसी ने उन्हें महत्त्वपूर्ण नहीं समझा। कूकों को भटके हुए तथा मूर्ख कहकर हम अपने कर्त्तव्य से छुट्टी पा जाते हैं। स्वार्थ के लिए अथवा लोभ के लिए यदि उन लोगों ने प्राण दिये होते तो हम उपेक्षा दिखा सकते थे, परन्तु उनकी तो ‘मूर्खता’ में भी ‘देशप्रेम’ का भाव कूट-कूटकर भरा था।

भगतसिंह – शहीद कर्तार सिंह सराभा

आज फिर सवाल उठता है कि उनके मरने से क्या लाभ हुआ? वह किसलिए मरे? इसका जवाब बिल्कुल स्पष्ट है। देश के लिए मरे। उनका आदर्श ही देश-सेवा के लिए लड़ते हुए मरना था। वे इससे ज़्यादा कुछ नहीं चाहते थे। मरना भी गुमनाम रहकर चाहते थे।

भगतसिंह – शहीदों के जीवन-चरित्र (सूफ़ी अम्बा प्रसाद, श्री बलवन्त सिंह, डॉक्टर मथुरा सिंह)

काकोरी के शहीदों को दिसम्बर, 1927 में फाँसी होने के बाद भगतसिंह ने अपने साथियों – भगवतीचरण वोहरा, शिव वर्मा, जयदेव कपूर आदि – से विचार-विमर्श करते हुए अपने देश के शहीदों व क्रान्तिकारी आन्दोलन सम्बन्धी जानकारी देने के निरन्तर यत्न शुरू किये। वे स्वयं भी इन आन्दोलनों का गहराई से अध्ययन कर रहे थे और देशवासियों को जागृत भी कर रहे थे। फ़रवरी, 1928 में ‘चाँद’ का ‘फाँसी अंक’ प्रकाशित हुआ। भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन और शहीदों के जीवन-चरित्र सम्बन्धी इस अंक में ‘विद्रोही’ छद्म नाम से भगतसिंह ने कई देशभक्तों के जीवन-चरित्र लिखे। यहाँ प्रस्तुत तीन जीवन-चरित्र वहीं से लिये गये हैं।

काकोरी के शहीदों के लिए प्रेम के आँसू

किसी का आदर्श कुछ होता है, किसी का कुछ। लेकिन उनका आदर्श देश था। उनका आदर्श हिन्दुस्तान की आज़ादी था। उनका कोई स्वार्थ नहीं था। उनके खाने के लिए, उन्हें ओढ़ने के लिए किसी बात की कमी न थी। वे तो जो कुछ करते थे, लोक-कल्याण की ख़ातिर, लोक-सेवा के लिए करते थे। वे इतने बलिदान के पुंज निकले, कि स्वयं को हमारे ऊपर वार दिया। आइये, इन वीरों को प्रणाम करें।

भगतसिह – काकोरी के शहीदों की फाँसी के हालात

आज वह वीर इस संसार में नहीं है। उसे अंग्रेज़ी सरकार ने अपना ख़ौफ़नाक दुश्मन समझा। आम ख़याल यह है कि उसका क़सूर यही था कि वह इस ग़ुलाम देश में जन्म लेकर भी एक बड़ा भारी बोझ बन गया था और लड़ाई की विद्या से ख़ूब परिचित था। आपको मैनपुरी षड्यन्त्र के नेता श्री गेंदालाल दीक्षित जैसे शूरवीर ने विशेष तौर पर शिक्षा देकर तैयार किया था। मैनपुरी के मुक़दमे के समय आप भागकर नेपाल चले गये थे। अब वही शिक्षा आपकी मृत्यु का एक बड़ा कारण हो गया। 7 बजे आपकी लाश मिली और बड़ा भारी जुलूस निकला।