शिक्षा व्यवस्था को स्वयम्भू ठेकेदारों से मुक्त करो!
पूरे देश में एक यूनिफ़ोर्म स्कूली व्यवस्था लागू करो !!
दोस्तो! साथियो! अभी चन्द रोज़ पहले हरियाणा के रोहतक में स्थित भैयापुर लाढौत गुरुकुल में बच्चों के साथ यौन-शोषण का मामला सामने आया था। गुरुकुल प्रबन्धन न केवल मामले पर लीपापोती करता रहा बल्कि उसने शोषण का शिकार हुए बच्चों पर ही झूठ बोलने का दोष मढ़ दिया। गुरुकुल प्रबन्धन ने अपनी कहानी में कहा कि ‘उक्त बच्चे गुरुकुल से भागना चाहते थे किन्तु पकड़े गये और और पिटाई होने पर ऐसे आरोप लगा रहे हैं।’ मीडिया स्रोतों के अनुसार शुरू में कुछ ही बच्चों के साथ यौन शोषण की बात उठी थी किन्तु अब बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) की टीम के अनुसार कुकर्म या मारपीट के शिकार बच्चों की संख्या तीन दर्जन से भी ज़्यादा हो सकती है! कुछ गिरफ्तारियाँ भी हो चुकी हैं तथा डीएसपी के नेतृत्त्व में एसआईटीई का गठन हो चुका है। हरियाणा के कृषि मन्त्री ओमप्रकाश धनखड़ का इस मुद्दे पर दिया गया बयान जले पर नमक छिड़नने वाला था। उनके कहने का तात्पर्य यह था कि कुछ मामलों के कारण पूरी संस्था पर सवाल उठाना उचित नहीं! बात तो सही लगती है परन्तु अभी तो अभिभावक गुरुकुल के दरवाज़े पर खड़े फफक रहे थे और मामले की जाँच चल ही रही थी, ऐसे में होना यह चाहिए था कि बचाव की मुद्रा में आने की बजाय तेज़ी से जाँच का आदेश देते। अभी रोहतक का मामला ठण्डा भी नहीं हुआ था कि बिहार के बोधगया में स्थित एक बौद्ध शिक्षण केन्द्र में भी 15 बच्चों के साथ कुकर्म की पुष्टि हुई।
कहना नहीं होगा कि गुरुकुल से लेकर मठ हों या फिर मदरसे से लेकर चर्च हों शिक्षा के नाम पर चलने वाली काफ़ी धार्मिक संस्थाओं में समय-ब-समय इस तरह के मामले सामने आते रहे हैं। इस कोण से देखने पर ज़रूर “सर्वधर्म समभाव” की उक्ति सटीक बैठती है क्योंकि क़रीबन सभी धर्मों से जुड़ी तमाम संस्थाओं में ज़्यादतियाँ प्रकाश में आती रहती हैं! माता-पिता और अभिभावक सोचते हैं कि हमारे बच्चे यहाँ संस्कारों का पाठ पढ़कर आयेंगे परन्तु बहुतों को यहाँ ऐसे घाव मिलते हैं जो पूरी ज़िन्दगी नासूर की तरह रिसते रहते हैं। एक स्वस्थ माहौल में रहने की बजाय बच्चे यहाँ एक कृत्रिम माहौल में रहते हैं तथा बहुत तरह की कुंठाओं के शिकार लोग इनके तथाकथित शिक्षक होते हैं। बेशक सभी को अपनी धार्मिक मान्यता और पूजा पद्धति की स्वतन्त्रता होनी चाहिए किन्तु क्या बच्चों के जीवन के साथ इस तरह से खिलवाड़ किया जाना उचित है? क्या एक विशेष साँचे-खाँचे में उनके कोमल मस्तिष्क को बन्द कर देना उचित है? तमाम धर्मों की आड़ में बहुत बड़ा गोरखधंधा चल रहा है जहाँ कोई भी दूध का धुला नहीं है। एनजीओ की ठेकेदारी में चलने वाले छात्रावासों का तो कहना ही क्या! मुजफ्फरपुर, देवरिया, प्रतापगढ़, भोपाल समेत देश भर में इनके द्वारा की गयी कारगुजारियाँ सबके सामने हैं। इस तरह की घटनाएँ इतनी ज़्यादा हो रही हैं कि हम इनके आदी से हो गये हैं! देश के प्रबुद्ध नागरिकों के सामने इस तरह के वाकये बहुत तरह के विचारणीय सवाल छोड़ते हैं।
शिक्षा के स्वयम्भू ठेकेदार चाहे वे धार्मिक मठ-गुरुकुल-मदरसे-चर्च हों या फिर एनजीओ केन्द्र से लेकर राज्य सरकारों तक से करोड़ों की मात्रा में अनुदान उड़ाते हैं। क्योंकि इनके साथ लोगों की धार्मिक भावनाएँ भी जुड़ी होती हैं और यह कहने के ज़रूरत नहीं है कि हमारे देश में इन्हीं धार्मिक भावनाओं की खेती तक़रीबन सभी चुनवबाज पार्टियाँ करती हैं; कुछ खुलकर डंके की चोट पर तो कुछ पर्दे के पीछे से। जनता के पैसे का यह अपव्यय हम पर ही भारी पड़ रहा है क्योंकि सरकारी खजाना तो हमारी ही जेब से गये अप्रत्यक्ष करों से भरता है। दूसरी और सरकारी कही जाने वाली शिक्षा व्यवस्था का भट्ठा बैठा रखा है। बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से शिक्षण संस्थान कराह रहे हैं! छात्रों-युवाओं और प्रबुद्ध नागरिकों को पूरे देश में एक समान शिक्षा व्यवस्था लागू कराने हेतु सरकारों पर दबाव बनाना चाहिए और यह चीज़ जनान्दोलन के बूते ही सम्भव है। इससे शिक्षा व्यवस्था न केवल स्वयम्भू ठेकेदारों से मुक्त होगी बल्कि इससे शिक्षा व्यवस्था में व्याप्त गैर बराबरी भी दूर होती। यदि भारत वाकई में एक धर्म-निरपेक्ष देश है तो यहाँ सरकार को हर प्रकार की धार्मिक शिक्षा पर रोक लगाकर सभी के लिए समान, तर्कपरक, वैज्ञानिक मूल्यों से युक्त शिक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए। हम सरकारों से पुरजोर माँग करते हैं कि पूरे देश में एक समान शिक्षा व्यवस्था लागू की जाये।
दिशा छात्र संगठन नौजवान भारत सभा
मदवि रोहतक सम्पर्क: 8010156365, 9992130268, FB: https://www.facebook.com/dishachhatrasangthan/