शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस (28 सितम्बर) के अवसर पर नौजवान भारत सभा का विशेष सदस्यता अभियान
नौजवान भारत सभा के सदस्य बनो! भगतसिंह के सपनों को साकार करो !!
साथियो,
किसी भी देश और समाज को आगे बढ़ाने में युवाओं का बहुत बड़ा योगदान होता है। तरुणाई जीवन का वह समय होता है जब व्यक्ति सबसे ज्यादा आजाद और सृजनशील होता है और जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर विचार करता है, खुले आसमान में सपनों के पंख लगा कर दूर तक विचरण करता है और अपने सपनों को जमीनी हकीकत में ढालता है। मानव इतिहास युवाओं के असंख्य बलिदान और वीरता की कहानी है। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी युवाओं ने खूब कुर्बानियां दी थी। भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरू, अशफाक उल्ला खान, रामप्रसाद बिस्मिल, राजेंद्र लाहिडी, रोशन सिंह व चंद्र शेखर आजाद जैसे अनेक युवाओं की कुर्बानियों की बदौलत ही हम गुलामी की बेड़ियों को तोड़ पाए थे। इनमें से शहीद भगतसिंह सिर्फ एक बहादुर युवा ही नहीं थे बल्कि क्रान्तिकारी विचारक भी थे। उन्होने उस समय की क्रान्तियों का अध्ययन किया और फाँसी पर लटकाये जाने से 3 दिन पूर्व – 20 मार्च, 1931 को – भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु ने पंजाब के गवर्नर को लिखा था – “हम यह कहना चाहते हैं कि युद्ध छिड़ा हुआ है और यह लड़ाई तब तक चलती रहेगी जब तक कि शक्तिशाली व्यक्तियों ने भारतीय जनता और श्रमिकों की आय के साधनों पर अपना एकाधिकार कर रखा है – चाहे ऐसे व्यक्ति अंग्रेज़ पूँजीपति और अंग्रेज़ या सर्वथा भारतीय ही हों, उन्होंने आपस में मिलकर एक लूट जारी कर रखी है। चाहे शुद्ध भारतीय पूँजीपतियों के द्वारा ही निर्धनों का ख़ून चूसा जा रहा हो तो भी इस स्थिति में कोई अन्तर नहीं पड़ता।”
भगतसिंह ने ब्रितानी गुलामी के खिलाफ संघर्ष की शुरुआत की तो उनका पहला महत्वपूर्ण कदम था-1926 में नौजवान भारत सभा की स्थापना। इसके दो वर्षों बाद भगतसिंह और उनके साथियों ने एच.एस.आर.ए. (हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन) नामक नए क्रान्तिकारी संगठन की स्थापना की और स्पष्ट शब्दों में घोषणा की -कि केवल अंग्रेजों की सत्ता उखाड़ फेंकना ही हमारा मकसद नहीं है। केवल अंग्रेजों के चले जाने से आम जनता की समस्यायें खत्म नहीं होंगीं। आम जनता की समस्याएं तभी खत्म हो सकती हैं जब देशी मुनाफाखोरों को भी उखाड़ फेंका जाय और एक ऐसी समतामूलक व्यवस्था का निर्माण किया जाय जिसमें एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान का शोषण असम्भव बना दिया जाय। कांग्रेस के बारे में भगतसिंह ने उसी समय कहा था कि कांग्रेस देशी मुनाफाखोरों की पार्टी है जो विदेशी लुटेरों से सौदेबाजी करके अपने लिए सत्ता हासिल करना चाहती है। उन्होंने आजादी की परिभाषा 90 प्रतिशत लोगों की आजादी के रूप में, देशी-विदेशी हर किस्म की पूँजी द्वारा जनता के शोषण के खात्मे के रूप में की थी और एक समानतापूर्ण सामाजिक ढाँचे के निर्माण को क्रांति का लक्ष्य बताया था।
लेकिन भगतसिंह की शहादत के 87 साल बाद भी आज स्थिति यह है कि जनता के आंसुओं के सागर में मुट्ठी भर धनिकों के विलासिता की मीनारें खड़ी हैं। कहने को तो यह लोकतन्त्र है यानी जनता का राज, परन्तु इस लोकतन्त्र का एक-एक खम्भा जनता के सीने में बेदर्दी से धँसा हुआ है। संसद-विधानसभा की कार्यवाही में अरबों रुपये सालाना खर्च होते हैं। परन्तु नेता-मन्त्री वहाँ एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते हैं, कुर्सियाँ तोड़ते हैं और जनता के खिलाफ नीतियाँ बनाते हैं। चुनाव की प्रक्रिया इतनी खर्चीली है कि आम आदमी चुनाव लड़ने के बारे में सोच तक नहीं सकता। सांसद-विधायक से लेकर ग्राम प्रधान तक के चुनाव में धनबलियों-बाहुबलियों का बोलबाला रहता है। चुनाव जाति-धर्म का समीकरण बैठाकर, साम्प्रदायिक दंगे भड़काकर, झूठे वायदे करके, बूथ कब्जा करके और मुनाफाखोर मीडिया के दम पर लड़े और जीते जाते हैं। बड़े-बड़े उद्योगपति और धनकुबेर अपनी तिजोरी उन पार्टियों के लिए खोल देते हैं जो उनके हितों में काम करने में सबसे अधिक समर्थ हों। इसीलिए चुनाव में चाहे जो पार्टी जीते जनता की जीवन स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ता। जनता के लिए चुनाव का केवल यही मतलब है कि वो साँपनाथ से डसी जायेगी या फिर नागनाथ से। क्या हम ये नहीं देख पा रहे कि कांग्रेस के भ्रष्टाचार से तंग आयी जनता को अच्छे दिनों के सपने दिखाकर सत्ता में आयी मोदी सरकार ने तो अम्बानी, अडानी की सेवा के लिए जनता पर कहर ही बरपा कर दिया है। एक तरफ नोटबन्दी, जीएसटी, महंगाई से जनता को आर्थिक रूप से लूटा जा रहा है वहीं दूसरी तरफ कट्टरपंथी हिन्दुत्ववादी संगठन कभी गाय के नाम पर तो कभी किसी अन्य मुद्दे पर दंगे भड़का रहे हैं, मॉब लिंचिंग करवा रहे हैं।
अंग्रेजों ने भारतीय जनता को लूटने के लिए जिन नियम-कानूनों, शासन-प्रशासन की मशीनरी का इस्तेमाल किया था, उन सबको न केवल ज्यों का त्यों अपना लिया गया बल्कि जनान्दोलनों एवं सच्चे जनप्रतिनिधियों के निर्मम दमन के लिए ऐसे नये-नये कुख्यात काले कानूनों जैसे-टाडा, पोटा, मकोका, यूएपीए आदि का निर्माण किया है, जिसकी मिसाल इतिहास में नहीं मिलेगी। दुनिया के सबसे बड़े लोकतन्त्र की सच्चाई यह है कि एक आम आदमी बिना पैसे और सिफारिश के थाने में प्राथमिकी (एफ.आई.आर.) तक दर्ज नहीं करा सकता। लोअर कोर्ट में नियम है-जिसका पैसा, उसको न्याय और हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट में पैसे के अभाव में एक सामान्य आदमी कोर्ट की देहरी तक नहीं लाँघ पाता। पूरे देश में श्रम कानूनों की खुलेआम धज्जियाँ उड़ाकर खेतों-कारखानों के मेहनतकशों की मेहनत लूटी जा रही है। उद्योगपति-नेताओं और लेबर अधिकारियों की मिलीभगत के चलते श्रम कानून अमल में आ ही नहीं पाते। अब श्रम कानूनों में सुधार के बहाने रहे सहे श्रम कानूनों को ही ख़त्म किया जा रंहा है ताकि उद्येागपतियों को मेहनतकशों की मेहनत लूटने में कोई कानूनी अड़चन न आये। बाकी मेहनतकशों के आन्दोलन को कुचलने के लिए सत्ता का डंडा हमेशा तैयार रहता है। खाने-पीने, ऐशो-आराम से लेकर सारी चीज़ों को पैदा करने वाले करोड़ों मेहनतकश जानवरों की तरह हड्डी तोड़ मेहनत करने के बावजूद किसी तरह पेट भर पाते हैं। मेहनतकश आबादी अपना काम कुछ दिनों के लिए रोक दे तो हर चीज़ ठप्प हो जायेगी। परन्तु इन मेहनतकशों को किसी तरह की सुरक्षा हासिल नहीं है।
लोकतन्त्र का चौथा खम्भा यानि मीडिया पूरी तरह से बड़े-बड़े धनकुबरों के नियन्त्रण में है। लोग अपने हालात पर न सोच सकें इसके लिए निर्मम-निरंकुश लोभ-लाभवादी, ‘खाओ-पीओ मौज करो’ की संस्कृति के ड्रग्स की विषैली खुराकें देकर पूरे समाज के दिल-ओ-दिमाग को कुन्द किया जा रहा है। तमाम झूठे विज्ञापन, अश्लील फिल्म-गाने-कार्यक्रम, भ्रष्ट नेताओं की छवि चमकाने, संवेदनशील मामलों को सनसनीखेज बनाने या ऐसा बनाकर पेश करने में, जिससे कि लोगों में विद्वेष बढ़े, मीडिया चौबीस घण्टों लगी रहती है। जनता के दुःख-दर्द को ‘विकास’, ‘नेताओं की उपलब्धियों’, ‘अच्छे दिन’ के भ्रामक प्रचार के नीचे ढंक दिया जाता है।
अंग्रेजों से आजादी मिलने के 71 सालों बाद भी स्थिति ये है कि देश के करोड़ों लोग महँगाई, बेरोजगारी, छंटनी, तालाबन्दी, लूट और भ्रष्टाचार की मार झेल रहे हैं। शिक्षा, चिकित्सा, पानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएँ हासिल कर पाना जनता के लिए और दूभर हो गया है। देश की ऊपर की 10 प्रतिशत आबादी के पास कुल परिसम्पत्ति का 85 प्रतिशत इकट्ठा हो गया है जबकि नीचे की 60 प्रतिशत आबादी के पास मात्र 2 प्रतिशत है। सबसे ऊपर के 22 पूँजीपति घरानों की परिसम्पत्तियों में दूने-चौगुने नहीं बल्कि 1000 गुने से भी अधिक की वृद्धि हुई है। वहीं दूसरी ओर प्रतिदिन हजारों बच्चे भूख व कुपोषण से मर जाते हैं जबकि सरकारी गोदामों में अनाज सड़ता रहता है। 84 करोड़ से भी अधिक लोग एक दिन में 20 रूपये से ज़्यादा खर्च नहीं कर पाते। करीब 36 करोड़ लोग झुग्गियों-फुटपाथों पर रहने के लिए मजबूर हैं। मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही खाने-पीने के सामान पर सब्सिडी में 1000 करोड़ रूपये और स्वास्थ्य व परिवार कल्याण के बजट में करीब 6000 करोड़ रूपये की कटौती कर दी थी। जबकि इस साल रिकॉर्ड स्तर पर धन्नासेठों का 1 लाख 44 हजार करोड़ का कर्ज माफ़ कर दिया गया। जनता का पैसा अमीरों पर लुटाया जा रहा है। अप्रत्यक्ष कर बढ़ा दिये गये हैं। इससे मँहगाई तेजी से बढ़ी है। पेट्रोल के दाम 90 और डीजल के दाम 80 रुपए पहुच गए है। 4 सालों में गैस 400 से 800 रुपए का हो गया है। आम जनता की थाली से दाल-सब्जी तक गायब होती जा रही है।
कहा जाता है कि नौजवान किसी देश का भविष्य होते हैं। भारत देश सबसे युवा आबादी का देश है लेकिन हमारे देश में लगभग 30 करोड़ नौजवान बेरोजगारी की हालत में धक्के खा रहे हैं। इस बर्बर मानवद्रोही दौर में व्यापक आम नौजवान आबादी के सामने जो सबसे ज्वलन्त और फौरी सवाल ला खड़े किये हैं, वे हैं – लगातार मंहगी और पहुँच से दूर होती शिक्षा तथा रोजगार के अवसरों में लगातार कमी। आम घरों के दसवीं, बारहवीं, बीए, एमए, आईटीआई, पॉलिटैक्निक, पीएचडी आदि डिग्रियां करने वाले नौजवान एक अदद नौकरी के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। अगर कहीं नौकरी मिलती भी है तो ठेकेदारी प्रथा में जहां कोई श्रम कानून लागू नहीं होता है। नौजवानों की एक बड़ी आबादी कल कारखानों में सस्ते श्रम, दिहाड़ी मज़दूरी, कॉल सेंटर, छोटे दुकान और नेटवर्क मार्केटिंग में 10-12 घंटे खटने के बाद भी बड़ी मुश्किल से 6000 से 10000 के बीच कमा पा रही हैं। नौकरियां लगातार घट रही है। हाल ही में रेलवे की 90 हज़ार सीटों के लिए 3 करोड़ आवेदन आये थे। आज गाँवों-शहरों में शिक्षा, चिकित्सा, परिवहन आदि क्षेत्रों में ही विकास के असंख्य कार्य बचे हैं। प्राकृतिक संसाधनों की हमारे देश में कोई कमी नहीं है। अगर व्यवस्था का उद्देश्य मुनाफा कमाना ना हो तो काम के घण्टे आज 8 से कम करके 4 या 6 किये जा सकते हैं। इससे न केवल आम जनता की सुविधाएँ बढेंगी बल्कि बेरोजगारी की समस्या का भी समाधान संभव है। लेकिन बेरोजगारी देश के धनपशुओं के लिए फायदेमन्द है क्योंकि इससे उन्हे सस्ते से सस्ते दरों पर श्रमशक्ति निचोड़ने का मौका मिलता है। यही स्थिति शिक्षा की भी है। उच्च शिक्षा की हालत पहले से ही खस्ता थी। अबकी बार यूजीसी के बजट में 55 प्रतिशत की कटौती करने से उच्च शिक्षा का कबाड़ा होना तय है। वही हवा में तैर रहे जिओ इंस्टीटूट को इंस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंट के खिताब से नवाजा गया और इन्हें हजार करोड़ रुपए तक देने की पेशकश की गई है। दूसरी तरफ सरकारी स्कूल के लिए पैसा मांगने पर शिक्षा मंत्री प्रकाश जावेडकर कहते है कि सरकारी स्कूल कटोरा लेकर भीख ना मांगे। जाहिर सी बात है जिन स्कूलों की यह बात कर रहे है उसमे आम मज़दूर मेहनतकश के बच्चे पढ़ते है। घटती सीटों और बढ़ती फीसों का आम चलन गरीब और औसत मध्यवर्गीय युवाओं को उच्च शिक्षा के कैम्पसों से बाहर धकेल देता है। डॉक्टर और इंजीनियर बनने का सपना उनके लिए आज दुर की कौड़ी है। जिस शिक्षा से रोजगार की गुंजाइश होती है, वह मुट्ठीभर धनिकों की औलादों की बपौती हो गयी है।
इन वजहों से आज आम नौजवानों में बहुत पस्तहिम्मती और निराशा है। निराशा व अवसाद में बहुत सारे नौजवान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। बहुत सारे नौजवान नशा व अपराध की गिरफ्त में फँस रहे हैं। सही समझदारी न होने के चलते बहुत सारे नौजवानों को तमाम चुनावी पार्टियाँ धार्मिक, जातीय, क्षेत्रीय झगड़ों में उलझा रही हैं और उनकों असली मुद्दों से भटका रही हैं।
आज इस देश के नौजवानों के सामने खड़ा है एक जलता हुआ प्रश्नचिन्ह-शासक वर्ग के छलावों, भ्रमों-भटकावों से मुक्त होकर कब हम भगतसिंह के आह्वान पर ध्यान देंगे? भगतसिंह ने विद्यार्थियों को दिए गए संदेश में कहा था कि ‘इस समय हम नौजवानों से यह नहीं कह सकते कि वे बम और पिस्तौल उठाएँ। आज विद्यार्थियों के सामने इससे भी अधिक महत्वपूर्ण काम है…नौजवानों को क्रांति का यह सन्देश देश के कोने-कोने में पहुँचाना है, फैक्टरी कारखानों के क्षेत्रों में, गंदी बस्तियों और गाँवों की जर्जर झोपड़ियों में रहने वाले करोड़ों लोगों में इस क्रांति की अलख जगानी है, जिससे आजादी आएगी और तब एक मनुष्य द्वारा दूसरे मनुष्य का शोषण असम्भव हो जाएगा।” गतिरोध में फँसा इतिहास गर्म युवा रक्त के ईंधन से ही फिर गतिमान हो सकता है। आम जनता के विचारसम्पन्न, साहसी और हर कुर्बानी के लिए तैयार बेटे-बेटियों का आगे आना होगा। उन्हें न सिर्फ एकजुट होकर अपने हर न्यायसंगत अधिकार के लिए लड़ना होगा, बल्कि समाज में जारी न्याय और अधिकार के हर संघर्ष में शामिल होना होगा। अपनी हड्डियाँ गलाकर और रसातल के अँधेरे नर्क में जीते हुए समाज की बुनियाद का निर्माण करने वाले मेहनतकशों की उन्हें न सिर्फ सेवा करनी होगी, बल्कि उनके जीवन और संघर्षां के साथ घुल-मिल जाना होगा।
‘नौजवान भारत सभा’ का गठन इसी मकसद से किया गया है कि वह देश भर के युवाओं को संगठित करे और एक नई क्रान्ति की तैयारी करे। ‘नौभास’ उन सभी नौजवानों को अपने साथ जोड़ेगी जो जातिवाद और धार्मिक कट्टरता से मुक्त हैं, जो किसी भ्रष्ट चुनावी पार्टी का झण्डा नहीं ढोते, जो स्त्रियों को पैर की जूती या उपभोग की वस्तु नहीं मानते बल्कि उन्हें अपने बराबर का इंसान मानते हैं। नौजवान भारत सभा का सर्वप्रमुख नारा है-सबके लिए समान शिक्षा और सबको रोजगार। नौभास की यह माँग होगी भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी कानून के तहत सरकार या तो हर काम करने वाले योग्य व्यक्ति को काम दे,या फिर भरण-पोषण योग्य बेराजगारी भत्ता दे। नौजवान भारत सभा चिकित्सा, पानी, बिजली आदि जनवादी अधिकारों के लिए लोगों को जागरूक करेगी और उनको हासिल करने के लिए संघर्ष में उतरेगी। नौजवान भारत सभा जनसहयोग के दम पर पुस्तकालयों, अध्ययन-मण्डलों, प्रचार अभियानों, पर्चों, पत्रिकाओं-पुस्तकों आदि के माध्यम से नौजवानों के बीच एक नये क्रान्तिकारी प्रबोधन की मुहिम पैदा करेगी, और उन्हें वैज्ञानिक जीवन-दृष्टि और इतिहास-बोध से लैस करेगी। नौभास शराबखोरी, दहेजप्रथा, जाति-पाँति, छुआछूत और सभी सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध व्यापक प्रचार अभियान चलायेगी।
साथियो, अब थोड़ा भी इंतजार हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए बहुत घातक होगा। आज़ादी के जिस पौधे को भगतसिंह जैसे महान शहीदों ने अपने रक्त से सींचा था वो मुरझा रहा है। इन शहीदों का सपना हमारी आँखों में झांक रहा है। आइये इन शहीदों के सपनों के भारत के निर्माण के संघर्ष में प्राण-प्रण से जुट जांय। यह पर्चा सिर्फ नौजवान भारत सभा का परिचय नहीं बल्कि आह्वान है कि आप नौजवान भारत सभा के सदस्य बने और भगत सिंह के विचारों को आगे बढ़ाएं।
क्रांतिकारी अभिवादन के साथ
उठो जवानो आगे आओ ! शोषण मुक्त समाज बनाओ !!
नौजवान भारत सभा
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