बच्चों को बचाओ! सपनों को बचाओ!
मोबाइल, टीवी के ज़हर से अपने बच्चों को बचाओ!
कुसंस्कृति के कचरे को अपने और अपने बच्चों के दिमाग़ से बाहर निकालो!!
- नौजवान भारत सभा, गोरखपुर इकाई द्वारा ‘बच्चों को बचाओ, सपनों को बचाओ’ मुहिम के तहत निकाला गया पर्चा

रिपोर्टों के मुताबिक़ 12 साल की उम्र तक के 42 फ़ीसदी बच्चे टीवी, मोबाइल, टैबलेट आदि से हर दिन औसतन 2 से 4 घण्टे चिपके रहते हैं। वहीं इससे ज़्यादा उम्र के बच्चे दिन का 47 फ़ीसदी वक़्त यानी लगभग 10 घण्टे मोबाइल फ़ोन की स्क्रीन देखकर बिताते हैं। सबसे कम उम्र में भारतीय बच्चों को मोबाइल मिल जाता है। लोकल सर्कल के एक सर्वे में पाया गया कि 55 प्रतिशत बच्चों के माता-पिता यह मानते हैं कि 9 से 13 साल के बच्चे पूरे दिन कभी माँ का तो कभी पिता के मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। मोबाइल, टीवी, सोशल मीडिया पर बच्चे लगातार तरह-तरह के हिंसक वीडियो गेम खेलते हैं, अश्लील, फूहड़, मार-काट के रील्स स्क्रॉल करते रहते हैं। टीवी पर आम तौर आने वाली ज़्यादातर फ़िल्मों और धारावाहिकों में फूहड़ता, हिंसा, अवैज्ञानिकता, नशाखोरी, साम्प्रदायिक उन्माद, अन्धराष्ट्रवाद तथा अपराध और छेड़खानी का महिमामण्डन होता है। वहीं विज्ञापनों के ज़रिए भी लगातार जंक फूड की लत लगाने, गैरज़रूरी सामानों की चाहत पैदा करने, गरीब विरोधी, स्त्रीविरोधी मूल्य आधारित प्रचार अन्धाधुन्ध किया जाता है। भोजपुरी फ़िल्मों, गानों और दक्षिण भारत की बहुतेरी फ़िल्मों में तो भयानक फूहड़ता-अश्लीलता, अविश्वसनीय तरीके की मार-धाड़ भरी रहती है। इसी तरह ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से 2016 से 2020 के दौरान अश्लील सामग्री फैलाने के मामले में 1200 प्रतिशत और यौन उत्पीड़न के इरादे से किये गए साइबर क्राइम के मामले में 479 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
इन सबका बच्चों के दिमाग़ पर बहुत ही भयानक असर पड़ रहा है। बच्चों में आस-पास के परिवेश, समाज व परिवार से अलगाव, हिंसा की प्रवृत्ति का विकास, तनाव/डिप्रेशन, आत्महत्या की प्रवृति, नशाखोरी, यौन आक्रामकता, विज्ञापनों में दिखाए गए तरह—तरह के सामानों को हासिल करने के लिए चोरी-छिनैती जैसे की अपराध की दर बहुत तेज़ बढ़ रही है। लगातार फ़ोन या टीवी में डूबे रहने के चलते बच्चों में खेलकूद, जीव-जन्तुओं, पेड़-पौधों के प्रति उदासीनता तेज़ी से बढ़ रही है। उनकी कल्पनाशीलता, सोचने-समझने की क्षमता, सृजनात्मकता पर बहुत बुरा असर पड़ रहा है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट आदि पर निरन्तर बहुतेरी फ़ालतू की सामग्री आती रहती है जिसका हमारे और हमारे बच्चों के लिए कोई उपयोगिता नहीं होती। ये बच्चों के दिमाग़ को स्थिर होकर सोचने की क्षमता कम करती जाती हैं। मोबाइल फ़ोन के अधिक उपयोग से सूखी आँखें, कम्प्यूटर विजन सिण्ड्रोम, अँगूठे और कलाई की कमज़ोरी, गर्दन में दर्द और कठोरता, स्पर्श सम्बन्धी मतिभ्रम, नोमोफोबिया, असुरक्षा भ्रम, अनिद्रा, चिड़चिड़ाहट, आँखों की रोशनी और याद्दाश्त कम होने, दिल से जुड़ी बीमारियाँ बच्चों में बढ़ रही हैं। फ़िल्मों में शराब, सिगरेट और फास्ट फूड का अधिक सेवन दिखाए जाने का बच्चों पर बुरा असर पड़ रहा है। छोटे-छोटे बच्चों में नशे की प्रवृत्ति बढ़ रही है।
न्यू टाइम मोबिलिटी पोल के मुताबिक 84 प्रतिशत लोग मोबाइल के बिना एक दिन भी नहीं रह सकते। स्थिति इतनी खराब हो चुकी है कि परिजनों द्वारा मोबाइल छीने जाने या न देने से परिजनों पर हमला या ख़ुदकुशी की कई घटनायें सामने आ चुकी हैं और इस तरह की घटनायें निरन्तर बढ़ रही हैं। हरियाणा में 9 साल के एक बच्चे से मोबाइल छीने जाने की वजह से उसने अपना हाथ काटने की कोशिश की। ग्रेटर नोएडा में एक 16 वर्षीय लड़के ने बहन की शिकायत पर माँ द्वारा मोबाइल छीनने पर माँ और बहन की हत्या कर दी। इस तरह की ख़बरें देशभर से लगातार आ रहीं हैं। सूचना-संचार क्रान्ति के बाद एक पीढ़ी इस तरह के मानसिक कचरे को लेकर बड़ी भी हो चुकी है। इस पीढ़ी के लिए इस तरह की चीजें सामान्य बात बन गई है। घरों में कई बार अपना पिण्ड छुड़ाने के लिए माँ-बाप ख़ुद बच्चों को मोबाइल फ़ोन थमा देते हैं। आज पूरे देश में बढ़ रहे अपराध, बलात्कार, स्कूली बच्चों के गैंग बनाकर बम-पिस्तौल चलाने, ड्रग्स लेने आदि की घटनायें तेज़ी से बढ़ रही है।
अब ज़रा इस गौर करिए कि हमारे और हमारे बच्चों के दिमाग़ में ज़हर भरने वाले मुट्ठीभर लोग किस तरह बेशुमार दौलत कमा रहे हैं। तथ्य बताते हैं कि आज देश-दुनिया में ऑनलाइन गेम का अरबों-खरबों का कारोबार है। वर्ष 2019 में ऑनलाइन गेम का वैश्विक कारोबार सैंतीस अरब डॉलर से भी ज्यादा का था। वर्ष 2025 तक एक सौ बीस अरब डॉलर से भी अधिक हो जाने का अनुमान है। केपीएमजी की रिपोर्ट बताती है कि भारत में भी यह कारोबार बारह हज़ार करोड़ रुपये से अधिक का है।
इन तथ्यों से आसानी से समझा जा सकता है कि मुट्ठी भर धन्नासेठों के फ़ायदे के लिए हमारे बच्चों के दिमाग़ में ज़हर भरा जा रहा है। इससे होने वाली भयंकर परेशानियों से ज़्यादातर परिजन चिन्तित हैं। लेकिन उन्हें इसे रोकने का कोई उपाय नज़र नहीं आता। लेकिन इसे रोकना ही होगा अन्यथा आने वाले दिनों में चारों ओर भयानक स्थिति पैदा होगी। ‘नौजवान भारत सभा’ इसे ख़िलाफ़ जनता को जागरूक करने और संगठित करने के लिए संकल्पबद्ध है। नागरिकों को न केवल अपने स्तर पर कड़ाई से इसे रोकना होगा बल्कि सरकार पर दबाव डालना होगा कि बच्चों के लिए इण्टरनेट के इस्तेमाल पर बैन लगाया जाए। ऑस्ट्रेलियाई सरकार ने 16 साल के बच्चों के लिए इण्टरनेट के इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक लगा दी। तो हमारे देश में भी यह क्यों नहीं हो सकता है। ? ‘नौजवान भारत सभा’ देश के बच्चों और युवाओं को दिमागी मानसिक तौर पर बीमार होने और बर्बाद होने से बचाने के लिए इस मुहिम में आप सभी का साथ देने का अपील करती है। ‘नौजवान भारत सभा’ द्वारा संचालित ‘शहीद भगत सिंह पुस्तकालय’ इस दिशा में एक प्रयास है। यहाँ देश-दुनिया की प्रसिद्ध कविता-कहानी, उपन्यास, विज्ञान, इतिहास, शहीदों के जीवन और विचारों पर किताबें उपलब्ध हैं। यहाँ समय-समय पर बच्चों को अच्छे गीत, नाटक, पेंटिंग सिखाए जाते हैं और खेल-कूद जैसी अन्य सामूहिक गतिविधियाँ कारवाई जाती हैं। आप अपने बच्चों के साथ हमारे पुस्तकालय पर ज़रूर आयें। आने के लिए नीचे दिए गए नंबरों नम्बरों पर सम्पर्क करें।
नौजवान भारत सभा
शहीद भगत सिंह पुस्तकालय, संस्कृति कुटीर, जाफ़रा बाज़ार, कल्याणपुर गोरखपुर
फोन नंबर–9555925682, 8115491369