पहलगाम आतंकी हमला :
कश्मीर में शान्ति स्थापना के दावे हुए हवा!
सैलानियों और आम नागरिकों की सुरक्षा में चूक के लिए कौन है ज़िम्मेदार !?
पहलगाम चरमपन्थी हमले को बहाना बनाकर देशभर को साम्प्रदायिकता की आग में
झोंकने की संघी साज़िशों को नाकाम करो !
22 अप्रैल के दिन कश्मीर के अनन्तनाग ज़िले के पहलगाम नामक पर्यटन स्थल पर आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में कुल 27 लोगों की जान चली गयी तथा कई घायल हो गये हैं। सबसे पहले नौजवान भारत सभा इस हमले की भर्त्सना करती है। इस आतंकी हमले में मरने वालों में भारत के अलग-अलग राज्यों के लोग और एक विदेशी नागरिक शामिल है। हमले की ज़िम्मेदारी ‘द रेज़िस्टेंस फ्रण्ट’ नामक चरमपन्थी गुट ने ली है जोकि पाकिस्तानी आतंकी संगठन लश्कर-ए-तैयबा से सम्बन्धित बताया जाता है। हमले के दौरान पर्यटकों की जान बचाने और उन्हें सुरक्षित पहुँचाने में कश्मीर के घोड़े वाले, होटल वाले, ऑटो-गाड़ी वाले और तमाम लोग जुट गये और उनकी भरपूर सहायता की। यही नहीं आदिल हुसैन नामक एक घोड़े वाले की तो आतंकी की गोली से मौक़े पर जान भी चली गयी। सैलानियों ने खुद स्वीकारा कि छोटे-मोटे काम-धन्धे वाले ग़रीब कश्मीरी बिना पैसे के उनकी हर प्रकार की मदद में तत्पर दिखायी दिये। इस आतंकी हमले की कश्मीर की आम आबादी ने भरपूर मज़म्मत की है। इसके ख़िलाफ़ आम लोगों ने सड़कों पर उतरकर विरोध जताया और इसे कश्मीरियत पर हमला करार दिया। इसके विरुद्ध कश्मीर की मस्जिदों से ऐलान किये गये और तमाम राजनीतिक पार्टियाँ भी इस कुकृत्य के विरोध में उतरी। भारतीय मुख्य धारा के मीडिया द्वारा कश्मीरियों की जो छवि सदियों से दिखायी जा रही थी सोशल मीडिया पर तैर रही ख़बरों, तस्वीरों और विडियो ने उसे धूल में मिला दिया है। इसके बावजूद इस हमले का कश्मीरी पर्यटन पर निश्चय ही बहुत नकारात्मक असर पड़ने वाला है। इसके साथ ही यह हमला कश्मीर में शान्ति स्थापना के केन्द्र सरकार के तमाम दावों की भी बख़ूबी पोल खोलता है।
पहलगाम आतंकी हमले के बाद कश्मीर समेत पूरे देश की आम इन्साफ़पसन्द अवाम दुख और गुस्से में है। लेकिन एक ज़हरखुरानी गिरोह है जिसकी बाँछें इस अमानवीय कुकर्म के बाद भी खिल उठी हैं। संघ परिवार व भाजपा से जुड़े विभिन्न प्रकार के लम्पट तत्त्वों के चेहरे इन दिनों खिले हुए हैं। उन्हें मुस्लिमों को निशाना बनाने का एक और मौक़ा जो मिल गया है। अलग-अलग राज्यों से कश्मीरी छात्रों और मुस्लिम श्रमिकों को निशाना बनाये जाने की ख़बरें आ भी रही हैं। धर्म को आधार बनाकर होने वाली संघी आतंकवाद की तमाम घटनाओं पर कान में रुई-तेल डालकर सोते रहने वाला गोदी मीडिया इस आतंकी हमले को भरपूर साम्प्रदायिक रंग देने में जुटा हुआ है। भाजपा का पालतू आईटी सेल तरह-तरह के झूठ परोसने में मग्न है। इस हमले के विरोध में खड़े हर कश्मीरी को आतंकी और देश के हर मुस्लिम को शक के घेरे में धकेला जा रहा है। पाकिस्तान का हौवा खड़ा करके हर कश्मीरी और हर मुस्लिम को हिन्दुस्तान का दुश्मन बताकर निशाना बनाया जा रहा है। हम देश के प्रत्येक इन्साफ़पसन्द छात्र-नौजवान और आम जनता से अपील करते हैं कि भाजपा और संघ परिवार के लोगों के एजेण्डे में फँसने की कत्तई ज़रूरत नहीं है। इनके खुद के बच्चे तो विदेशों में पढ़ते हैं और अच्छी तरह से सेटल हैं लेकिन बेरोज़गारी की मार झेल रहे आपके भाई-बहनों और बेटे-बेटियों की दुर्गति करने में ये एक बार के लिए भी नहीं हिचकेंगे। इसलिए दोस्तो, शिक्षा-रोज़गार और चिकित्सा-आवास जैसे अपने असल हक़-अधिकारों पर अपनी एकजुटता बनाये रखो और साम्प्रदायिक फ़ासीवादियों का शिकार बनकर अपने ही भाइयों से बैर मोल मत लो। कश्मीरियों और ग़रीब व प्रवासी मुस्लिमों पर हमलावर गुण्डा गिरोहों को अपनी एकजुटता के दम पर पीछे धकेलो क्योंकि अन्याय को चुपचाप देखना भी अन्याय का भागीदार बनना ही होता है।
दोस्तो, कश्मीर में जारी आतंकी हमलों की जवाबदेही मोदी सरकार से ली जानी चाहिए। कश्मीर दुनिया भर में सबसे ज़्यादा सैन्यकृत जगहों में से एक है। इसके बावजूद कैसे पुलवामा जैसी घटना हो जाती है जिसमें सेना के दर्जनों जवान मारे गये थे? और अब कैसे पहलगाम जैसी घटना हो गयी जिसमें 27 बेगुनाहों की जान चली गयी!? यदि इन हमलों के पीछे सचमुच पाकिस्तान का ही हाथ है तो सीमापार से घुसपैठ हो कैसे जाती है! मोदी सरकार ने अपना छप्पन इंची सीना फुलाकर नोटबन्दी के साथ “आतंकवाद की कमर तोड़नी” शुरू की थी, उसके बाद कश्मीर पर से धारा 370 और 35-ए भी हटा दी गयी, जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा भी छीन लिया गया, डोमिसाइल नियमों में बदलाव भी कर दिये गये, कश्मीरी क़ौम को बूटों के तले रौन्द दिया गया लेकिन उसके बाद भी “आतंकवाद की कमर टूटती” नज़र नहीं आ रही है। निश्चय ही जहाँ न्याय नहीं है वहाँ शान्ति नहीं हो सकती है। कश्मीर की आम जनता आतंकवाद का स्याह दौर देख चुकी है और वह कभी इसकी हामी नहीं रही लेकिन इसके बावजूद दमन के बाद पनपने वाला असन्तोष विभिन्न तरह के कट्टरपन्थी आतंकवादी संगठनों को फलने-फूलने का मौक़ा ज़रूर देता है।
साथियो, पुलवामा की तरह पहलगाम हमले के मामले में भी इसकी उम्मीद बहुत ही कम है कि असल हमलावरों तक पहुँचा जायेगा। लेकिन यह ज़रूर है कि आगामी बिहार और बंगाल चुनावों में इस घटना का इस्तेमाल ज़रूर बढ़-चढ़कर किया जायेगा। कारगिल युद्ध से लेकर कश्मीर में जितने भी बड़े हमले हुए हैं ज़रा आँख-कान खोलकर उनकी समय सारणी को चुनावों की समय सारणी से मिलायेंगे तो दाल में ज़रूर कुछ काला नज़र आयेगा। ज़्यादा दिन नहीं हुए जब देवेन्द्र सिंह नामक डीएसपी रैंक के एक बड़े पुलिस अधिकारी को हिज़्बुल मुज़ाहिद्दीन के इनामी आतंकवादियों के साथ पकड़ा गया था। पुलवामा के हमले के बाद सैनिकों की मौत के नाम पर जिंगोइज़्म, अन्धराष्ट्रवाद और युद्धोन्माद भड़काकर वोट माँगने वालों की असलियत क्या किसी से छिपी है? अस्सी के दशक के बाद कश्मीर की फिज़ाओं में जब-जब भी आतंकवाद का ज़हर घुला है तब-तब उसका सबसे बड़ा फ़ायदा साम्प्रदायिक फ़ासीवादीयों ने ही उठाया है। और इसका सबसे ज़्यादा नुकसान कश्मीर के सभी जाति-मज़हब के लोगों का हुआ है।
हम माँग करते हैं कि पहलगाम के आतंकी हमले की पुख़्ता जाँच होनी चाहिए। इस हमले में मृतक जनों को उचित मुआवज़ा दिया जाये और घायलों को बेहतर इलाज़ मुहैया कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही कश्मीर में जाने वाले सैलानियों, वहाँ कार्यरत सरकारी कर्मचारियों, प्रवासी श्रमिकों और सभी आम नागरिकों को जान-माल की सुरक्षा की गारण्टी दी जाये। देश भर के अलग-अलग राज्यों में पढ़ाई कर रहे कश्मीरी छात्रों और रोज़ी-रोज़गार के लिए जाने वाले मज़दूरों को ज़रूरी सुरक्षा मुहैया करायी जाये। कश्मीर में वास्तविक शान्ति तभी स्थापित हो सकती है जब कश्मीरी अवाम को उनके सभी ज़रूरी राजनीतिक और आर्थिक हक़-अधिकार प्राप्त होंगे।
– नौजवान भारत सभा