नौजवानों के लिए जुमलों से भरा आम बजट 2024-25

इस बजट के ज़रिये मोदी सरकार ने एक बार फिर नौजवानों के भविष्य पर हमला बोला है। मीडिया में उछाले जा रहे आंँकड़ों के मुताबिक़ इस बार स्कूली शिक्षा के बजट में पिछले साल की तुलना में 561 करोड़ की वृद्धि कर 73008 करोड़ आवंटित किया गया है। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर इस बजट को कुल बजट की तुलना में देखें तो 2023 की अपेक्षा इसमें 0.17 फ़ीसदी की कमी आयी है और इसी तरह इस बजट को महंँगाई से प्रतिसंतुलित करने पर आंँकड़ों की सारी बाज़ीगरी खुल कर सामने आ जाती है। इसी प्रकार उच्च शिक्षा में पिछले साल के संशोधित बजट की तुलना में 17 फ़ीसदी और यूजीसी के बजट में 60 फ़ीसदी की भारी भरकम कटौती की गयी है। इतना ही नहीं जम्मू कश्मीर के लिए स्पेशल स्कॉलरशिप योजना, कॉलेजों-विश्वविद्यालय के छात्रों को मिलने वाली तमाम स्कॉलरशिप योजनाओं को प्रधानमंत्री उच्चतर शिक्षा प्रोत्साहन योजना के साथ मिला दिया गया है। मतलब साफ़ है एक तरफ़ उच्च शिक्षा बजट में कटौती से विश्वविद्यालयों में फ़ीस वृद्धि होगी, इन्फ्रास्ट्रक्चर तबाह होगा और परिणामस्वरूप ग़रीब परिवार से आने वाले छात्र परिसर से दूर हो जायेंगे तथा निजी विश्वविद्यालयों को फलने-फूलने का मौका मिलेगा। दूसरी तरफ़ स्कॉलरशिप योजनाओं के मर्जर और यूजीसी के बजट में कटौती से छात्रों को मिलने वाली स्कॉलरशिप पर भी तलवार लटकेगी।

भाजपाई-संघी निकले दो माह पहले बीएचयू में हुए सामूहिक बलात्कार के तीनों आरोपी! संस्कार और चरित्र की दुहाई देने वालों का यही है असल चाल-चेहरा-चरित्र !

इस मामले में संलिप्त तीनों आरोपियों पर भाजपा के बड़े नेताओं का हाथ था। जेपी नड्डा, स्मृति ईरानी, योगी आदित्यनाथ और नरेन्द्र मोदी तक के साथ बत्तीसी दिखाते हुए इनके फ़ोटो मौजूद हैं। शायद यही कारण हो कि पुलिस को इन्हें “काबू” करने में दो महीने लग गये! उल्टा इस मामले में न्याय की माँग कर रहे बीएचयू के छात्रों के साथ पुलिस की शह पर संघी लम्पटों द्वारा मारपीट की गयी थी। यही नहीं प्रदर्शनकारी छात्रों पर ही मुक़दमें दर्ज कर लिये गये थे जबकि अपराधी दो महीने जुगाड़ लगाते फिरते रहे। इस बीच ‘ऑन द स्पॉट’ “इन्साफ़” करने में कुख्यात यूपी पुलिस की बन्दूकें ठण्डी पड़ी रही और योगी जी का न्याय देवता बुलडोज़र भी जंग खाये खड़ा रहा! ज़ाहिर तौर पर हम “न्याय” के इस तालिबानी संस्करण के कत्तई हिमायती नहीं हैं। ऐसी घटनाएँ यही साफ़ करती हैं कि आमतौर पर इस “न्याय प्रणाली” का शिकार ग़रीब, दलित और मुस्लिम ही बनते हैं। इस घटना में भी यही दिखता है।