गदर पार्टी के नायक शहीद करतार सिंह सराभा के 122 वें जन्ममदि‍वस (24 मई, 1896) के अवसर पर

करतार सिंह सराभा और उन जैसे न जाने कितने नौजवान देश की आज़ादी के लिए हँसते–हँसते फांसी के फन्दों पर झूल गये। अंग्रेजों को तो जनबल से डरकर भागना पड़ा किन्तु देश से भागते समय वे सत्ता की बागडोर अपने देसी भाई–बन्धुओं को सौंप गये। इन देसी हुक्मरानों ने जनता को जी भरकर निचोड़ा है और आज़ादी के बाद मिले तमाम हक–अधिकार लगातार या तो छीने जाते रहे हैं या बस काग़जों की शोभा बढ़ा रहे हैं। 71 वर्षों की आधी–अधूरी आज़ादी चीख़–चीख़कर बता रही है कि यह शहीदों के सपनों की आज़ादी कत्तई नहीं है।

भगत सिंह को पीली पगड़ी किसने पहनाई? / चमन लाल

पिछले कुछ वर्षों से मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भगत सिंह की वास्तविक तस्वीरों को बिगाड़ने की मानो होड़ सी मच गई है. मीडिया में बार-बार भगत सिंह को किस अनजान चित्रकार की बनाई पीली पगड़ी वाली तस्वीर में दिखाया जा रहा है.

बिस्मिल-अशफ़ाक को याद करो! साम्प्रदायिक ताकतों को ध्वस्त करो!!

काकोरी काण्ड के महान शहीदों की शहादत दिवस के मौके पर हम यह संकल्प लें कि मुट्ठी भर शोषकों-शासकों के द्वारा फैलाये जा रहे साम्प्रदायिक उन्माद में हम नहीं बहेंगे! हम समान शिक्षा व सबको रोजगार जैसी बुनियादी अधिकारों की लड़ाई के लिए जाति-धर्म-क्षेत्र के भेदभाव से ऊपर उठ कर लड़ेंगे। हम किसी चुनावी पार्टी के बहकावे में नहीं आयंगे। चुनाव बीतते ही उनके वायदे को पूरा करवाने व एक-एक पैसे का हिसाब लेने के लिए घेरेंगे। हमारे देश में इतना कुछ है कि अगर मुट्ठी भर लुटेरों के मुनाफे पर टिकी व्यवस्था की जगह समतामूलक व्यवस्था का निर्माण किया जाय तो हरेक इंसान को बेहतर जीवन दिया जा सकता है।

महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन के जन्मदिवस (9 अप्रैल) व पुण्यतिथि (14 अप्रैल) पर

आज जब सर्वग्रासी संकट से ग्रस्त हमारा समाज गहरी निराशा, गतिरोध और जड़ता के अँधेरे गर्त में पड़ा हुआ है, जहाँ पुरातनपंथी मूल्यों-मान्यताओं और रूढ़ियों के कीड़े बिलबिला रहे हैं, तो राहुल सांकृत्यायन का उग्र रूढ़िभंजक, साहसिक और आवेगमय प्रयोगधर्मा व्यक्तित्व प्रेरणा का स्रोत बनकर सामने आता है। आज जिस नये क्रान्तिकारी पुनर्जागरण और प्रबोधन की ज़रूरत है, उसकी तैयारी करते हुए राहुल जैसे इतिहास-पुरुष का व्यक्तित्व हमारे मानस को सर्वाधिक आन्दोलित करता है।

भागो नहीं, दुनिया को बदलो! – राहुल सांकृत्यायन की जन्मतिथि व पुण्यतिथि के अवसर पर अभियान

हम जनता के सच्चे, बहादुर सपूतों का आह्वान करते हैं कि वे राहुल और भगतसिंह के सपनों के भारत के निर्माण के लिए आगे आयें। अब और देर आत्मघाती होगी। या तो पूँजी की सर्वग्रासी गुलामी से मुक्ति या फिर फासीवादी बर्बरता और विनाश- हमारे सामने सिर्फ ये ही दो विकल्प हैं। हम तमाम जिन्दा लोगों का आह्वान करते हैं।

पूर्वी उत्तर प्रदेश में चलाया गया ‘क्रान्तिकारी नवजागरण अभियान’

‘क्रान्तिकारी नवजागरण अभियान’ के पीछे का मक़सद आज के समय में भगतसिंह के सपनों पर आधारित समाज को बनाने के लिए एक नए इन्क़लाब का ऐलान है. भगतसिंह का सपना गोरे अंग्रेजों के जाने के बाद भूरे अंग्रेजों को सत्ता में बैठा देने का नहीं था बल्कि एक ऐसे समाज के निर्माण का था जो बराबरी और न्याय पर टिका हो, जहाँ एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान को लूटा जाना असंभव बना दिया जाय. लेकिन आज़ादी के 68 सालों का इतिहास भूरे साहबों की लूट को आज नंगे रूप में सामने ला चुका है. नौजवान भारत सभा के कार्यकर्ताओं ने तमाम इंसाफपसंद नागरिकों और नौजवानों का आह्वान किया कि वे भूरे साहबों की लूट पर टिकी व्यवस्था को जड़ से उखाड़ कर इतिहास के कूड़ेदान में फेंक दे और देश की करोड़ों की मेहनतकश आबादी को संगठित करने में लग जायं ताकि इस सदी में भगतसिंह और दूसरे तमाम क्रांतिकारियों के सपनों को साकार किया जा सके.

अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के शहादत दिवस (27 फरवरी) पर जारी पर्चा

चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रान्तिकारियों के लिए देश का मतलब उसमें रहने वाले करोड़ों मेहनतकश लोगों से था। आज़ाद अन्धराष्‍ट्रवादी नहीं थे। वो अपने देश के अलावा पूरी दुनिया के मेहनती लोगों से प्यार करते थे और अपने देश व पूरी दुनिया के शोषकों से नफरत करते थे। आज़ाद उन लोगों में नहीं थे जो बात-2 पर ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हैं और हकीकत में अपने थोड़े लाभ के लिए देश की जनता और प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाले चुनावी पार्टियों के आगे-पीछे घूमते हैं। आज़ाद उनमें से नहीं थे जो देश की जनता के लिए दुःख उठाने की बात आते ही बिल में घुस जाते हैं। आज़ाद वो देशप्रेमी और दुनियाप्रेमी थे जो अपने देश व पूरी दुनिया में आम जनता के जीवन की बेहतरी के लिए अपनी ज़िन्दगी को कुर्बान तक कर देने का माद्दा रखते थे। वो अपनी बात पर सौ प्रतिशत खरे उतरे।

काकोरी कांड के शहीदों की याद में नौभास द्वारा देशव्‍यापी कार्यक्रम

काकोरी कांड के शहीदों की याद में ‘इंक़लाबी जन एकजुटता सप्ताह’ का समापन अम्बेडकरनगर के राजे सुल्तानपुर और सिंघल पट्टी मे नुक्कड़ सभाओं , नुक्कड़ नाटक ‘देश को आगे बढ़ाओ’ और ‘कारवां चलता रहेगा’ गीत से किया गया।

दिल्‍ली में ‘पैग़ाम-ए-इंक़लाब मुहिम’ का तीसरा दिन

आज 28 सितंबर को भगतसिंह के जन्‍मदिवस पर नौजवान भारत सभा की उत्‍तर पश्चिमी दिल्‍ली इकाई द्वारा तीसरे दिन शाहाबाद डेयरी के विभिन्‍न ब्‍लॉकों में ‘पैग़ाम-ए-इंक़लाब मुहिम’ की शुरुआत सुबह प्रभात फेरी में क्रांतिकारी गीतों से की गई। इसके बाद अलग-अलग जगहों पर गुरुशरण सिंह के नाटक ‘हवाई गोले’ पर आधारित ‘देख फकीरे लोकतंत्र का फूहड़ नंगा नाच’ खेला गया और नुक्‍कड़ सभाएं करते हुए पर्चा वितरण किया गया।

शहादत दिवस पर देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में कार्यक्रम

आज हमारे लिए शहादत दिवस मनाना कोई रस्म पूर्ति करना नहीं है बल्कि सच्‍चे अर्थो में शहीदों के बेहतर समाज बनाने के सपने को सकार करने के लिए शहीदों के जीवन व विचारों से प्रेरणा लेकर इंकलाब की लड़ाई को जारी रखनी होगा | शहीदों की लड़ाई सिर्फ विदेशी हकूमत के खिलाफ़ नहीं थी बल्कि मेहनतकश जनता की देसी लूट के खिलाफ़ भी थी। 1947 से लेकर अबतक देश की मेहनतकश जनता के साथ जो लूट-शोषण-अन्याय होता आया है इस बात की चीखती गवाही है कि भगतसिंह और उनके साथियों के सपनों का समाज बनना अभी बाकी है।लोक सभा चुनावों में जितनी भी पार्टियाँ शामिल हो रही हैं किसी से भी जनकल्याण की कोई उम्मीद नहीं है। किसी भी पार्टी के पास जनकल्याण की कोई ठोस नीति नहीं है सिर्फ खोखले दावे हैं। इन असहनीय हालातों में व्यापक जनता का जागना, संघर्ष के लिए एकजुट होना न टालनेयोग्य बन चुका है।