महान साहित्यकार प्रेमचन्द के जन्मदिवस (31 जुलाई) के अवसर पर उनका महत्वपूर्ण लेख पढ़ें! साम्प्रदायिकता और संस्कृति साम्प्रदायिकता सदैव संस्कृति की दुहाई दिया करती है। उसे अपने असली रूप में निकलने में शायद लज्जा आती है, इसलिए वह उस गधे की भाँति जो सिंह की खाल ओढ़कर जंगल में जानवरों पर रोब जमाता फिरता था, संस्कृति का खोल ओढ़कर आती है। हिन्दू अपनी संस्कृति को क़यामत तक सुरक्षित रखना चाहता है, मुसलमान अपनी संस्कृति को। दोनों ही अभी तक अपनी-अपनी संस्कृति को अछूती समझ रहे हैं, यह भूल गये…
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देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ एकजुट हो !
देश में बढ़ती साम्प्रदायिकता के ख़िलाफ़ एकजुट हो ! साथियो, फ़ासीवादी भाजपा के सत्ता में बैठे एक दशक से ज़्यादा समय बीत चुका है। इस एक दशक में भाजपा और संघ परिवार ने बहुत व्यवस्थित ढंग से राज्य और समाज के ढाँचे का फ़ासीवादीकरण करने का हर सम्भव प्रयास किया है। योजनाबद्ध ढंग से नये-नये साम्प्रदायिक प्रोजेक्ट खड़े करके पूरे समाज में नफ़रत का माहौल बनाया जा रहा है। साम्प्रदायिक उन्माद पैदा करने वाली बयानबाज़ियों से लेकर गोदी मीडिया द्वारा नफ़रती उन्माद पैदा करने वाले कार्यक्रमों और ख़बरों का प्रसारण…