भगतसिंह को फाँसी के बाद जेल सुपरिण्टेण्डेण्ट का प्रमाणपत्र

मैं एतद् द्वारा प्रमाणित करता हूँ कि भगतसिंह को दिये गये मृत्युदण्ड की तामील कर दी गयी है, और कि तद्नुसार उपरोक्त भगतसिंह को सोमवार 23 मार्च, 1931 को शाम 7 बजे लाहौर सेण्ट्रल जेल में गरदन से उस समय तक लटकाये रखा गया जब तक उसकी मृत्यु न हो गयी, कि शरीर पूरे एक घण्टे तक लटका रहा, और उसे तब तक नीचे नहीं उतारा गया जब तक मेडिकल अफ़सर द्वारा जीवन निश्शेष होने की पुष्टि नहीं कर ली गयी; और कि कोई दुर्घटना, त्रुटि या कोई अन्य अनिष्ट नहीं हुआ।

भगतसिंह को सज़ा-ए-मौत की तामीली का ट्रिब्यूनल द्वारा जारी वारण्ट

इस आदेश द्वारा आपको, उपरोक्त सुपरिण्टेण्डेण्ट को, अधिकृत किया जाता है और अपेक्षा की जाती है कि इस आदेश पर अमल करते हुए 17 अक्टूबर के दिन लाहौर में उपरोक्त भगतसिंह को गरदन से तब तक लटकाया जाये जब तक उसकी मृत्यु न हो जाये, और आदेश पर अमल के प्रमाणपत्र के साथ इस वारण्ट को हाईकोर्ट को वापस भेज दें।

एक दुर्लभ दस्तावेज़

मुझे 29 मई 1927 को भारतीय दण्ड विधान की धारा 302 के अन्तर्गत गिरफ़्तार किया गया और पाँच सप्ताह तक पुलिस हिरासत में बन्द रखा गया। मुझे 4 जुलाई 1927 को जमानत पर छोड़ा गया। तब से मुझे कभी भी पुलिस द्वारा या किसी भी अदालत द्वारा इस धारा के अन्तर्गत मुक़दमे का सामना करने के लिए नहीं बुलाया गया, अतः मैं मान रहा हूँ कि आपकी छानबीन पूरी हो गयी है और मेरे ख़िलाफ़ कुछ नहीं मिला है और व्यवहारतः आपने केस वापिस ले लिया है। इन परिस्थितियों में मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि मेरी गिरफ्तारी के समय मेरे शरीर से बरामद सभी वस्तुएँ कृपया लौटा दें। मुझे सूचित करें कि इस उद्देश्य के लिए मैं आपसे कब और कहाँ मिलूँ। जल्द अनुग्रह का बहुत आभार होगा।

वर्ग-रुचि का आन्दोलनों पर असर

अन्त में इतना ही कहूँगा कि वह नौजवान जो दुनिया में कुछ काम करना चाहते हैं या जो लोग भगवान के हर बन्दे की सेवा करने के लिए अपनी क़ीमती ज़िन्दगियाँ वक़्फ़ करना चाहते हैं, वे हिन्दुस्तानी मज़दूरों और किसानों में मिलकर उनकी रुचि समझने की कोशिश करें और उनकी असली तकलीफ़ें दूर करते हुए उनकी सच्ची उन्नति के लिए आन्दोलन करें। मैंने सरसरी निगाह से वर्तमान समय की गतिविधियों के कुछेक प्रमाण देकर एक ख़ास रुचि की ओर इशारा किया है। इसमें कुछेक नेकदिल लोगों को जोकि इन लहरों में शामिल हैं, नाराज़ नहीं होना चाहिए। मैं उनकी हमदर्दी और सच्चाई को अनुभव करते हुए भी इस ग़लती की ओर उनका ध्यान दिलाना अपना फ़र्ज़ समझता हूँ, क्योंकि मैं मानता हूँ कि यूरोपियन मुदबर का यह कथन सोलह आने सही है कि एक कारकुन का अपने काम से ही अनजान होना ख़तरनाक और हलाल कर देने वाली बात है।

शहीद अशफ़ाक़उल्ला का फाँसीघर से सन्देश

हिन्दुस्तानी भाइयो! आप चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय को मानने वाले हों, देश के काम में साथ दो! व्यर्थ आपस में न लड़ो। रास्ता चाहे अलग हों, लेकिन उद्देश्य सबका एक है। सभी कार्य एक ही उद्देश्य की पूर्ति के साधन हैं, फिर यह व्यर्थ के लड़ाई.झगड़े क्यों? एक होकर देश की नौकरशाही का मुक़ाबला करो अपने देश को आज़ाद कराओ।

शहीद रामप्रसाद बिस्मिल का अन्तिम सन्देश

अब तो मेरी यही राय है कि अंग्रेज़ी अदालत के आगे न तो कोई बयान दे और न ही कोई सफ़ाई पेश करे। अपील करने के पीछे एक कारण यह भी था कि फाँसी की तारीख़ बदलवाकर मैं एक बार देशवासियों की सहायता और नवयुवकों का दम देखूँ। इसमें मुझे बहुत निराशा हुई। मैंने निश्चय किया था कि सम्भव हो तो जेल से भाग जाऊँ। यदि ऐसा हो सकता तो बाक़ी तीनों की मौत की सज़ा भी माफ़ हो जाती।

शहीद राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी का पत्र

आज मुझे सुपरिण्टेण्डेण्ट ने बताया कि वायसराय ने मेरी रहम की दरख़्वास्त नामंज़ूर कर दी है। जेल के नियमों के अनुसार मुझे एक सप्ताह के भीतर फाँसी पर चढ़ाया जायेगा। तुम्हें मेरे लिए अफ़सोस नहीं करना चाहिए क्योंकि मैं अपना पुराना शरीर छोड़कर नया जन्म धारण कर रहा हूँ। आपको यहाँ आकर मुलाक़ात करने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि कुछ दिन पहले ही आप मुलाक़ात कर चुके हो। जब मैं लखनऊ में था तो बहिन ने दो बार मुलाक़ात की थी। सभी को मेरी ओर से प्रणाम और लड़कों को प्यार।

गाँधीजी के नाम शचीन्द्रनाथ सान्याल का खुला पत्र

मैं समझता हूँ कि यह मेरा दायित्व है कि मैं आपको उस वादे की याद दिलाऊँ जिसे कि आपने कुछ समय पहले किया था कि जब क्रान्तिकारी एक बार फिर अपनी चुप्पी तोड़कर भारतीय राजनीति के क्षेत्र में दाख़िल होंगे तो आप राजनीति के क्षेत्र से संन्यास ले लेंगे।। अहिंसावादी असहयोग आन्दोलन का प्रयोग अब ख़त्म हो चुका है। आप अपने प्रयोग के लिए पूरा एक साल चाहते थे, लेकिन प्रयोग अगर पाँच नहीं तो कम से कम पूरे चार सालों तक चला, और क्या अभी भी आप यह कहना चाहते हैं कि यह काफ़ी लम्बे समय तक नहीं चला है?