नौजवान भारत सभा की तरफ़ से देश की जनता के नाम एक ज़रूरी अपील!
दंगों की राजनीति और मजहबी जुनून का विरोध करो!
दोस्तो, साथियो! पूरे देश में साम्प्रदायिकता की राजनीति और मजहबी जुनून सिर चढ़कर बोल रहे हैं। ख़ासतौर पर बिहार और बंगाल का काफ़ी बड़ा हिस्सा दंगों की चपेट में है। रामनवमी के बाद लगी दंगों की आग अभी सुलग ही रही है। यह समझने के लिए किसी भविष्यवाणी की आवश्यकता नहीं है कि 2019 के चुनावों की तैयारियाँ शुरू हो चुकी हैं। चार साल होने को हैं जब कांग्रेस नीत यूपीए गठबन्धन की जगह भाजपा नीत एनडीए गठबन्धन सत्ता में आया। सत्ता में आने से पहले भाजपा ने आम जनता के सामने बहुत सारे जुमले उछाले और “अच्छे दिन” लाने की कसमें खायी थी। काले धन, एफडीआई, नोटबन्दी, जीएसटी, स्वामीनाथन आयोग की सिफ़ारिशों, महँगाई, बेरोज़गारी आदि-आदि को लेकर बहुत से मुद्दों पर गिरगिट की तरह रंग बदलते हुए भाजपा सरकार कांग्रेस की ही लुटेरी नीतियों को डण्डे के दम पर आगे बढ़ा रही है। धनपशु चोर जनता का करोड़ों-करोड़ रुपया लूटकर भाग रहे हैं और देश का चौकीदार युवाओं को पकौड़े तलने की नसीहत दे रहा है! देश में रोज़गार बढ़ने तो दूर उल्टा घट रहे हैं। महँगाई भी लगातार बढ़ती जा रही है और देश की बहुसंख्यक जनता का जीना मुश्किल होता जा रहा है। देश के मज़दूर, ग़रीब किसान और निम्नमध्यम वर्गीय लोग तबाही-बर्बादी झेल रहे हैं और सरकार सीधे तौर पर बड़ी पूँजी के हक़ में काम कर रही है। ऐसे वक्त में शासक जमात के पास एक ही चीज़ बचती है जिसकी मदद से आम जन को न केवल अपने हक़-अधिकार से विमुख किया जा सकता है बल्कि जिसका सहारा लेकर अपनी चुनावी गोटियाँ भी लाल की जा सकती हैं। और वह चीज़ है साम्प्रदायिकता की राजनीति!
अच्छे दिनों का कानफोडू शोर अब मन्दिर-मस्जिद और हिन्दू-मुसलमान में तब्दील हो चुका है। संघ परिवार और भाजपा समेत उसके अनुषंगी संगठन पूरे देश में जहाँ भी इनकी दाल गल रही है मजहबी जुनून को भड़काकर चुनाव रुपी वैतरणी नदी पार करने की फ़िराक़ में हैं। अन्य बहुत सारे चुनावी दल जनता के असल मुद्दे उठाने में नाकामयाब हो रहे हैं। ये पार्टियाँ भाजपा की आक्रामकता और पैसे की ताक़त के सामने असहाय साबित हो रही हैं, इनके नेता पैसे की थैली के लिए अपना दल बदल रहे हैं, ज़मीर का सौदा कर रहे हैं और गलत का विरोध करने का दम ही खो चुके हैं। बिहार में तो स्थिति बेहद ख़राब हो चुकी है जहाँ सुशासन बाबू के मुँह में दही जम गयी है और भाजपा के नेता-मन्त्री खुलेआम क़ानून की धज्जियाँ उड़ाकर सड़कों पर तलवारें भांज रहे हैं। बंगाल में भी क़ानून व्यवस्था चौपट है और ममता बैनर्जी की तुष्टिकरण की राजनीति का खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। उत्तरप्रदेश और राजस्थान के ज़हरीले हालात भी हमारे सामने हैं ही। साम्प्रदायिकता के तहत धर्म से जुड़े मुद्दों को लगातार उछाला जा रहा है, सरकारों में बैठे तमाम लोग ही अल्पसंख्यकों के प्रति एजेण्डे के तहत नफ़रत फैला रहे हैं। हर दिक्कत का ज़िम्मेदार उन्हें ही ठहरा देने के प्रयास किये जाते हैं। देश का ज़्यादातर प्रिण्ट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सत्ता की गोद में बैठ चुका है। सुनियोजित और संगठित तरीके से अफवाहें फैलायी जा रही हैं। गाय के नाम पर, फ़र्जी वीडियो बनाकर, झूठ बोलकर आम लोगों को बहकाया और भड़काया जा रहा है। पिछड़ी चेतना से युक्त आम जनमानस आसानी से इनका शिकार भी हो जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में संगठित गुण्डा गिरोहों में पीले-बीमार चेहरे वाले कुण्ठित युवाओं को आसानी से देखा जा सकता है।
ऐसे वक्त में नौजवान भारत सभा कुछ नुक्ते आपके सामने रखना चाहती है। सबसे पहले दंगों की राजनीति को समझिये; अपने आपसे सवाल पूछिए कि इन दंगों में जनता को धर्म के नाम पर भड़काने वाले किसी आडवाणी, प्रवीण तोगड़िया, ओवैसी, योगी आदित्यनाथ, आज़म खान, संगीत सोम, अर्जित शाश्वत, सुशील सिंह, गिरिराज सिंह, बाबुल सुप्रियो जैसों का कभी कुछ बिगड़ता है? क्या उनके बच्चे धार्मिक जुनून में बहकर कभी एक-दूसरे का सिर फोड़ते हैं? क्या उनके यहाँ जान-माल का कोई नुकसान होता है? सीधा सा उत्तर होगा नहीं! प्यारे दोस्तो! सरकारों को हम इसीलिए चुनते हैं और इसीलिए हम उनको अप्रत्यक्ष कर यानि टैक्स के रूप में अपनी मेहनत की कमाई सौंपते हैं ताकि हमें शिक्षा-स्वास्थ्य-रोज़गार-बिजली-पानी-दवा-इलाज़ की बेहतर सुविधाएँ मुहैया हो सकें। आज देश भर में भयंकर बेरोज़गारी पसरी है, सरकारी नौकरियों में धाँधलियाँ अपने चरम पर हैं। विरोध कर रहे छात्रों-युवाओं पर लाठियाँ बरसायी जा रही हैं। ऐसे में हमारा यह फ़र्ज ही नहीं बल्कि हमारी ज़िम्मेदारी बनती है कि असली मुद्दों से जनता का ध्यान भटकने न दें। स्थिति को समझें तथा न तो धार्मिक जुनून की आग में खुद जलें और न ही अपने आस-पास किसी को जलने दें। आज के साम्प्रदायिक कट्टरता के माहौल में यदि अपनी ज़िम्मेदारी को हम नहीं समझ पाये तो हमसे बड़ा समाजविरोधी और अपने वतन से गद्दारी करने वाला कोई नहीं होगा! हमारा फ़र्ज है कि शिक्षा-स्वास्थ्य-रोज़गार-बिजली-पानी-दवा-इलाज़ इत्यादि जनता के जीवन से जुड़े मुद्दों पर समाज में एकजुटता पैदा करें और अन्याय-दमन-शोषण-साम्प्रदायिक कट्टरता का जमकर विरोध करें। जहाँ सम्भव हो वहाँ युवाओं-नौजवानों-नागरिकों के संगठित दस्ते बनाये जाएँ जो समाज में जागरूकता फैलाने का काम तो करें ही साथ ही जो साम्प्रदायिक उन्मादी भीड़ से समाज की रक्षा कर सकें और जान-माल के नुकसान को रोक सकें। ब्रिटिश ग़ुलामी से पहले भारत में दंगों का कोई इतिहास नहीं रहा और अंग्रेजों ने ही सबसे पहले ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति के तहत हमारे समाज में दंगों के बीज बोये थे। बँटवारे की राजनीति लाखों लोगों के कत्लेआम के बाद देश के विभाजन तक पहुँची। आज भी अगर समाज में स्थिति को नहीं सम्भाला गया तो बहुत ही बुरे दिन देखने पड़ सकते हैं। और उसके ज़िम्मेदार आज के वोट के लिए लोगों को भिड़ाने वाले अंग्रेजों के वारिस चुनावी व्यापारी तो होंगे ही बल्कि चुप्पी की चादर ओढ़कर बैठने वाले हम लोग भी होंगें!
नौजवान भारत सभा का यह स्पष्ट मानना है कि इस या उस पार्टी का मुँह ताकने की बजाय आम जनता को उसके ज़रूरी मुद्दों के आधार पर संगठित किये जाने की ज़रूरत है। तमाम तरह की फ़िरकापरस्त और साम्प्रदायिक ताकतों को तभी हराया जा सकता है जब लोगों को उनके जीवन से जुड़े असली सवालों के आधार पर एकजुट किया जाये। शहीदे आज़म भगतसिंह के कहे अनुसार देश की युवा आबादी को न केवल स्वयं जागरूक और संगठित होना होगा बल्कि आम जनता को भी यह बताना होगा कि उनके असली दुश्मन कौन हैं। मौजूदा साम्प्रदायिक हमले के ख़िलाफ़ जनसाधारण को सचेत और लामबद्ध करना आज वक्त की ज़रूरत है।
क्रान्तिकारी अभिवादन के साथ,
जारीकर्ता : अध्यक्ष (इन्द्रजीत), महासचिव (छिन्दरपाल)
नौजवान भारत सभा