ये विकास नहीं पूँजीपतियों द्वारा धरती पर मानवजीवन का विनाश है। ये लुटेरों के वर्ग द्वारा अतीत में किये गये अपराधों में सबसे भयानक ऐतिहासिक अपराध है। अगर हम इस पूँजीवादी व्यवस्था को इतिहास के कब्र में दफनाने के लिए मैदान में नहीं उतर पड़ते तो हम भी इस अपराध में भागीदार होंगे।
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गाजा में बेगुनाहों के कत्लेआम का विरोध करो
फिलिस्तीन के एक हिस्से गाज़ा पट्टी की सीमा पर कल इजरायली सैनिकों ने 60 से ज्यादा मासूम नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी। सारी दुनिया के साम्राज्यवादी चुपचाप इस जनसंहार को देख रहे हैं। साम्राज्यवादी मीडिया इज़रायल के इस नंगे झूठ का भोंपू बना हुआ है कि उसने यह हमला फिलिस्तीनियों को सीमा में घुसने से रोकने के लिए किया है।
बलात्कारियों के समर्थन में प्रदर्शन, न्याय की नयी संघी, भाजपाई परिभाषा
भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसमें सभी पार्टियों के गुण्डे, मवाली, हत्यारे और बलात्कारी आकर शरण प्राप्त कर रहे हैं। इस देश के प्रधान सेवक उर्फ़ चौकीदार ने हाल ही में सीना फुलाते हुए कहा था कि कमल का फूल पूरे देश में फैल रहा है, लेकिन वे यह बताना भूल गये कि दरअसल यह फूल औरतों, दलितों, अल्पसंख्यकों और मजदूरों के खून से सींचा जा रहा है। एक तरफ भयंकर बेरोजगारी और दूसरी तरफ ऐसी घटनाएँ दिखाती हैं कि पूरे देश में फासीवाद का अँधेरा गहराता जा रहा है। गो-रक्षा, लव-जिहाद, ‘भारत माता की जय’, राम मंदिर की फ़ासीवादी राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ आम जनता को बाँटने और आपस में लड़ाने के लिए खेली जाती है। भारत माता की रक्षा करने का दम्भ भरते हुए ये फ़ासीवादी उन्माद मचाते हुए देश की असली माताओं-बहनों के साथ कुकर्म कर रहे हैं। उनके देश की परिभाषा बस कागज़ पर बना एक नक्शा है। बढ़ते निरंकुश स्त्री-विरोधी अपराधों से यह ज़ाहिर हो जाता है कि संघियों की देश की परिभाषा में महिलाओं के लिए स्थान सिर्फ और सिर्फ एक भोग्य वस्तु का है।
साम्प्रदायिक फासीवाद को ध्वस्त करो! जनता की फौलादी एकजुटता कायम करो!
आज पूरे देश में धार्मिक कट्टरता व जातिवादी उन्माद पैदा करने का मकसद एकदम साफ है — मेहनतकश जनता मोदी सरकार से हर साल दो करोड़ रोजगार का सवाल न पूछे; छात्र-नौजवान शिक्षा के क्षेत्र में कटौती पर सवाल न पूछें; ‘अच्छे दिन’ के वादे पर, काला धन, महँगाई पर रोक लगाने से लेकर बेहतर दवा-इलाज के मुद्दों पर बात न हो। ऐसे में साम्प्रदायिक फासीवाद के लिए ज़रूरी है कि वह देश के मजदूरों, निम्नमध्यवर्ग और गरीब किसानों के सामने एक नकली दुश्मन खड़ा करें।
बिस्मिल-अशफ़ाक को याद करो! साम्प्रदायिक ताकतों को ध्वस्त करो!!
काकोरी काण्ड के महान शहीदों की शहादत दिवस के मौके पर हम यह संकल्प लें कि मुट्ठी भर शोषकों-शासकों के द्वारा फैलाये जा रहे साम्प्रदायिक उन्माद में हम नहीं बहेंगे! हम समान शिक्षा व सबको रोजगार जैसी बुनियादी अधिकारों की लड़ाई के लिए जाति-धर्म-क्षेत्र के भेदभाव से ऊपर उठ कर लड़ेंगे। हम किसी चुनावी पार्टी के बहकावे में नहीं आयंगे। चुनाव बीतते ही उनके वायदे को पूरा करवाने व एक-एक पैसे का हिसाब लेने के लिए घेरेंगे। हमारे देश में इतना कुछ है कि अगर मुट्ठी भर लुटेरों के मुनाफे पर टिकी व्यवस्था की जगह समतामूलक व्यवस्था का निर्माण किया जाय तो हरेक इंसान को बेहतर जीवन दिया जा सकता है।
आम मेहनतकश आबादी के स्वास्थ्य का पंचनामा और मोदी-योगी की जुमलेबाजी का नंगा सच
आज सारी स्वास्थ्य प्रणाली ही बीमार है। भारतीय संविधान का भाग 3, अनुच्छेद 21 ‘जीने का अधिकार’ तो देता है पर जीने की पूर्वशर्त यानि अन्न, वस्त्र, मकान, स्वास्थ्य व शिक्षा की जवाबदेही से हाथ खीच लेता है। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) के नाम पर अब स्वास्थ्य सेवाओं का भी निजीकरण किया जा रहा है। नतीजतन स्वास्थ्य सेवाएं महंगी होती जा रही हैं। एक तरफ 1 प्रतिशत अमीरों के पास भारत की 58 प्रतिशत संपत्ति इकट्ठी हो गयी है व अनाज के मामले में आत्मनिर्भर होने की बात की जा रही है वहीं दूसरी तरफ 5000 बच्चे हर दिन भूख व कुपोषण के कारण मर जाते हैं। मुनाफे की इस व्यवस्था यानि पूँजीवाद में हर चीज बाजार में बिकती है। इसके लिए मेहनतकश आम जनता की जान भी लेनी पड़े तो इस व्यवस्था को हर्ज नहीं है। गोरखपुर की घटना से ये एकदम स्पष्ट हो रहा है।
गौरक्षा के नाम पर मानव हत्याएं, जनसेवा के नाम पर अडानी-अम्बानी की सेवा – यही है फासीवादी संघी सरकार का असली चेहरा
पूरे देश में संघ परिवार (आरएसएस) से जुड़े संगठनों ने पिछले लम्बे समय से गौरक्षा दल खड़े किये हैं जिनका एकमात्र उद्देश्य गाय के नाम पर भारत की जनता का साम्प्रदायिकीकरण करना है। इनके आतंक की वजह से बहुत सारी जगहों पर किसानों ने गाय खरीदना छोड़कर भैंस खरीदना शुरू कर दिया है क्योंकि ये घर के लिए दुधारू गाय ले जाते किसानों को भी पकड़कर मारते हैं। यहां तक कि मरे पशुओं का खाल उतारने वाले दलितों को भी मारते हैं। 2 अगस्त 2014 को दिल्ली में शंकर कुमार को इन्होंने जान से मार दिया था। शंकर कुमार दिल्ली महानगरपालिका की उस कॉण्ट्रेक्टर कम्पनी का कर्मचारी था जिसका काम मरे हुए पशु उठाना था।
महाविद्रोही राहुल सांकृत्यायन के जन्मदिवस (9 अप्रैल) व पुण्यतिथि (14 अप्रैल) पर
आज जब सर्वग्रासी संकट से ग्रस्त हमारा समाज गहरी निराशा, गतिरोध और जड़ता के अँधेरे गर्त में पड़ा हुआ है, जहाँ पुरातनपंथी मूल्यों-मान्यताओं और रूढ़ियों के कीड़े बिलबिला रहे हैं, तो राहुल सांकृत्यायन का उग्र रूढ़िभंजक, साहसिक और आवेगमय प्रयोगधर्मा व्यक्तित्व प्रेरणा का स्रोत बनकर सामने आता है। आज जिस नये क्रान्तिकारी पुनर्जागरण और प्रबोधन की ज़रूरत है, उसकी तैयारी करते हुए राहुल जैसे इतिहास-पुरुष का व्यक्तित्व हमारे मानस को सर्वाधिक आन्दोलित करता है।
जातिअंत का रास्ता सुधारवाद, संविधानवाद नहीं बल्कि क्रांतिकारी वर्गीय एकजुटता है
सभी जातियों के गरीबों को एकजुट होकर लड़ने की जरूरत है। निश्चित रूप से ये रास्ता आसान नहीं है। अगर आसान होता तो अब तक सभी जातियों के गरीब अपने आप ही एकजुट हो जाते और तब जाति व्यवस्था खत्म हो जाती। हजारों सालों से भारत में जाति व्यवस्था है और ऐसे में थोड़े से प्रचार से गरीब साथ नहीं आ जायेंगे पर ये भी सच है कि इसके अलावा ओर कोई रास्ता नहीं है।
शहीदों के जो ख़्वाब अधूरे, इसी सदी में होंगे पूरे!
भगतसिंह का सपना केवल अंग्रेजों को देश से भगाना नहीं था। बल्कि उनका सपना हज़ारों साल से चली आ रही अमीरी व गरीबी की व्यवस्था को इतिहास के कूड़ेदान में फेंककर समता और न्याय पर आधारित समाज बनाकर एक नये युग का सूत्रपात करना था। 1930 में ही भगतसिंह ने कहा था कि हम एक इंसान द्वारा दूसरे इंसान व एक देश द्वारा दूसरे देश के शोषण के ख़िलाफ़ हैं। कांग्रेस व गाँधी के वर्ग-चरित्र और धनिकों व भूस्वामियों पर उनकी निर्भरता को देखते हुए भगतसिंह ने चेतावनी दी थी कि इनका मक़सद लूटने की ताक़त गोरों के हाथ से लेकर मुट्ठी भर भारतीय लुटेरों के हाथ में सौंपना है।