गदर पार्टी के नायक शहीद करतार सिंह सराभा के 122 वें जन्ममदि‍वस (24 मई, 1896) के अवसर पर

करतार सिंह सराभा और उन जैसे न जाने कितने नौजवान देश की आज़ादी के लिए हँसते–हँसते फांसी के फन्दों पर झूल गये। अंग्रेजों को तो जनबल से डरकर भागना पड़ा किन्तु देश से भागते समय वे सत्ता की बागडोर अपने देसी भाई–बन्धुओं को सौंप गये। इन देसी हुक्मरानों ने जनता को जी भरकर निचोड़ा है और आज़ादी के बाद मिले तमाम हक–अधिकार लगातार या तो छीने जाते रहे हैं या बस काग़जों की शोभा बढ़ा रहे हैं। 71 वर्षों की आधी–अधूरी आज़ादी चीख़–चीख़कर बता रही है कि यह शहीदों के सपनों की आज़ादी कत्तई नहीं है।

पर्चा – हत्यारी वेदान्ता! हत्यारा विकास!! तूतीकोरिन की घटना हमारे मानवीय अस्तित्व को चुनौती है!

ये विकास नहीं पूँजीपतियों द्वारा धरती पर मानवजीवन का विनाश है। ये लुटेरों के वर्ग द्वारा अतीत में किये गये अपराधों में सबसे भयानक ऐतिहासिक अपराध है। अगर हम इस पूँजीवादी व्यवस्था को इतिहास के कब्र में दफनाने के लिए मैदान में नहीं उतर पड़ते तो हम भी इस अपराध में भागीदार होंगे।

गाजा में बेगुनाहों के कत्‍लेआम का विरोध करो

फिलिस्तीन के एक हिस्से गाज़ा पट्टी की सीमा पर कल इजरायली सैनिकों ने 60 से ज्‍यादा मासूम नागरिकों की गोली मारकर हत्‍या कर दी। सारी दुनिया के साम्राज्यवादी चुपचाप इस जनसंहार को देख रहे हैं। साम्राज्यवादी मीडिया इज़रायल के इस नंगे झूठ का भोंपू बना हुआ है कि उसने यह हमला फिलिस्‍तीनियों को सीमा में घुसने से रोकने के लिए किया है।

बलात्‍कारियों के समर्थन में प्रदर्शन, न्‍याय की नयी संघी, भाजपाई परिभाषा

भाजपा एक ऐसी पार्टी के रूप में उभरी है जिसमें सभी पार्टियों के गुण्डे, मवाली, हत्यारे और बलात्कारी आकर शरण प्राप्त कर रहे हैं। इस देश के प्रधान सेवक उर्फ़ चौकीदार ने हाल ही में सीना फुलाते हुए कहा था कि कमल का फूल पूरे देश में फैल रहा है, लेकिन वे यह बताना भूल गये कि दरअसल यह फूल औरतों, दलितों, अल्पसंख्यकों और मजदूरों के खून से सींचा जा रहा है। एक तरफ भयंकर बेरोजगारी और दूसरी तरफ ऐसी घटनाएँ दिखाती हैं कि पूरे देश में फासीवाद का अँधेरा गहराता जा रहा है। गो-रक्षा, लव-जिहाद, ‘भारत माता की जय’, राम मंदिर की फ़ासीवादी राजनीति सिर्फ़ और सिर्फ़ आम जनता को बाँटने और आपस में लड़ाने के लिए खेली जाती है। भारत माता की रक्षा करने का दम्भ भरते हुए ये फ़ासीवादी उन्माद मचाते हुए देश की असली माताओं-बहनों के साथ कुकर्म कर रहे हैं। उनके देश की परिभाषा बस कागज़ पर बना एक नक्शा है। बढ़ते निरंकुश स्त्री-विरोधी अपराधों से यह ज़ाहिर हो जाता है कि संघियों की देश की परिभाषा में महिलाओं के लिए स्थान सिर्फ और सिर्फ एक भोग्य वस्तु का है।

देश की जनता के नाम एक ज़रूरी अपील – दंगों की राजनीति और मजहबी जुनून का विरोध करो!

तमाम तरह की फ़िरकापरस्त और साम्प्रदायिक ताकतों को तभी हराया जा सकता है जब लोगों को उनके जीवन से जुड़े असली सवालों के आधार पर एकजुट किया जाये। शहीदे आज़म भगतसिंह के कहे अनुसार देश की युवा आबादी को न केवल स्वयं जागरूक और संगठित होना होगा बल्कि आम जनता को भी यह बताना होगा कि उनके असली दुश्मन कौन हैं। मौजूदा साम्प्रदायिक हमले के ख़िलाफ़ जनसाधारण को सचेत और लामबद्ध करना आज वक्त की ज़रूरत है।

जनता के हक में बने कानूनों को दुरुपयोग के बहाने कमजोर करने की साजिश को पहचानो

सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून में परिवर्तन करने का  कारण ये बताया कि इसका दुरुपयोग हो रहा है। देशभर में दलित विरोधी जातिगत नफरत व हिंसा का लम्‍बा इतिहास रहा है व इस फैसले के कुछ ही दिन बाद 29 मार्च के दिन गुजरात में एक दलित की हत्‍या सिर्फ इसलिए कर दी गयी कि वो घोड़ा रखता था। एससी/एसटी एक्ट के बावजूद भी देश में हर घंटे दलितों के खिलाफ 5 से ज्यादा हमले दर्ज होते हैं; हर दिन दो दलितों की हत्या कर दी जाती है; अगर दलित महिलाओं की बात की जाए तो उनकी स्थिति तो और भी भयानक है। प्रतिदिन औसतन 6 स्त्रियां बलात्कार का शिकार होती हैं। पिछले दस सालों 2007-2017 में दलित विरोधी अपराधों में 66 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हुई है , 2016 में 48,000 से ज्यादा मामले दर्ज हुए हैं। साथ में दी गयी तालिका से भी ये स्‍पष्‍ट है कि दलितों के विरुद्ध हुए बर्बर से बर्बर हत्‍याकाण्‍डों में भी सजाएं बिल्‍कुल नहीं हुई। ये चन्द आंकड़े साफ बता रहे हैं कि 70 साल की आजादी के बाद भी गरीब दलित आबादी हक-अधिकारों से वंचित है। महाराष्‍ट्र भी दलित विरोधी अत्‍याचारों के मामले में काफी आगे हैं। खैरलांजी से लेकर नितिन आगे तक की घटनाएं इस चीज की गवाही देती है। बर्बर दलित उत्पीड़न की घटनाएं सरकार के दलित विरोधी चेहरे को उजागर कर देती हैं, साथ ही पुलिस -प्रशासन से लेकर कोर्ट में बैठे अधिकारी भी जातिय मानसिकता से ग्रस्त हैं।  तभी दलितों पर हमले करने वाले ज्यादातर अपराधी बच निकलते हैं। देशभर में एससी/एसटी कानून के तहत वैसे भी वर्तमान में दलित उत्पीडन के मामले की एफआईआर दर्ज कराना सबसे मुश्किल काम होता है। साथ ही पुलिस प्रशासन का रवैया मामले में सजाओं का प्रतिशत काफी कम कर देता है।  दूसरा इस कानून में गलत केस दर्ज कराने पर पीड़ित के विरुद्ध आईपीसी की धारा 182 के अंतर्गत केस दर्ज करके दण्डित करने का प्रावधान पहले से ही है। इसी प्रकार अग्रिम जमानत मिलने तथा उच्च अधिकारियों की अनुमति से ही गिरफ्तारी करने का आदेश इस एक्ट के डर को बिलकुल खत्म कर देगा। हम सभी जानते है कि पहले ही इस एक्ट के अंतर्गत सजा मिलने की दर बहुत कम है। इस प्रकार कुल मिला कर एससी/एसटी एक्ट के दुरूपयोग को रोकने के इरादे से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गये दिशा निर्देश दलितों की रक्षा की बजाय आरोपी के हित में ही खड़े दिखाई देते हैं जिससे दलित उत्पीड़न की घटनाओं में बढ़ोत्तरी ही होगी।

भगत सिंह को पीली पगड़ी किसने पहनाई? / चमन लाल

पिछले कुछ वर्षों से मीडिया, खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भगत सिंह की वास्तविक तस्वीरों को बिगाड़ने की मानो होड़ सी मच गई है. मीडिया में बार-बार भगत सिंह को किस अनजान चित्रकार की बनाई पीली पगड़ी वाली तस्वीर में दिखाया जा रहा है.

साम्प्रदायिक फासीवाद को ध्वस्त करो! जनता की फौलादी एकजुटता कायम करो!

आज पूरे देश में धार्मिक कट्टरता व जातिवादी उन्माद पैदा करने का मकसद एकदम साफ है — मेहनतकश जनता मोदी सरकार से हर साल दो करोड़ रोजगार का सवाल न पूछे; छात्र-नौजवान शिक्षा के क्षेत्र में कटौती पर सवाल न पूछें; ‘अच्छे दिन’ के वादे पर, काला धन, महँगाई पर रोक लगाने से लेकर बेहतर दवा-इलाज के मुद्दों पर बात न हो। ऐसे में साम्प्रदायिक फासीवाद के लिए ज़रूरी है कि वह देश के मजदूरों, निम्नमध्यवर्ग और गरीब किसानों के सामने एक नकली दुश्मन खड़ा करें।

बिस्मिल-अशफ़ाक को याद करो! साम्प्रदायिक ताकतों को ध्वस्त करो!!

काकोरी काण्ड के महान शहीदों की शहादत दिवस के मौके पर हम यह संकल्प लें कि मुट्ठी भर शोषकों-शासकों के द्वारा फैलाये जा रहे साम्प्रदायिक उन्माद में हम नहीं बहेंगे! हम समान शिक्षा व सबको रोजगार जैसी बुनियादी अधिकारों की लड़ाई के लिए जाति-धर्म-क्षेत्र के भेदभाव से ऊपर उठ कर लड़ेंगे। हम किसी चुनावी पार्टी के बहकावे में नहीं आयंगे। चुनाव बीतते ही उनके वायदे को पूरा करवाने व एक-एक पैसे का हिसाब लेने के लिए घेरेंगे। हमारे देश में इतना कुछ है कि अगर मुट्ठी भर लुटेरों के मुनाफे पर टिकी व्यवस्था की जगह समतामूलक व्यवस्था का निर्माण किया जाय तो हरेक इंसान को बेहतर जीवन दिया जा सकता है।

भगतसिंह के 110वें जन्मदिवस (28 सितम्बर) पर शहीदों के सपनों को पूरा करने के लिए उठ खड़े हो!

भगतसिंह और उनके साथियों से प्रेरणा लेते हुए हमें उठ खड़ा होना होगा। हम सभी इंसाफ़पसन्द नागरिकों, मेहनतकशों और छात्रें-नौजवानों की ओर अपना हाथ बढ़ा रहे हैं। देश में एक नयी शुरुआत हो चुकी है। भगतसिंह द्वारा बनाये ‘नौजवान भारत सभा’ को फिर से ज़िन्दा कर दिया गया है। देश के कई विश्वविद्यालयों, कॉलेजों में हम इन्हीं आदर्शों पर क्रान्तिकारी छात्र संगठन बना रहे हैं। मेहनतकशों के बीच भी काम शुरू किया जा चुका है, स्त्रियों व जागरूक नागरिकों के मंच व संगठन जगह-जगह संगठित हो रहे हैं। इस विशाल देश को देखते हुए यह शुरुआत छोटी लग सकती है। लेकिन हर लम्बे सफ़र की शुरुआत एक उठाये गये पहले क़दम से ही होती है। दिशा यदि सही हो, संकल्प मज़बूत हो और सोच वैज्ञानिक हो, तो हवा के एक झोंके को चक्रवाती तूफ़ान बनते देर नहीं लगती। यदि आप एक ज़िन्दा इंसान की तरह जीने और हक़ के लिए लड़ने को तैयार हैं तो हमसे ज़रूर सम्पर्क कीजिये।