अमर शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद के शहादत दिवस (27 फरवरी) पर जारी पर्चा

चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रान्तिकारियों के लिए देश का मतलब उसमें रहने वाले करोड़ों मेहनतकश लोगों से था। आज़ाद अन्धराष्‍ट्रवादी नहीं थे। वो अपने देश के अलावा पूरी दुनिया के मेहनती लोगों से प्यार करते थे और अपने देश व पूरी दुनिया के शोषकों से नफरत करते थे। आज़ाद उन लोगों में नहीं थे जो बात-2 पर ‘भारत माता की जय’ का नारा लगाते हैं और हकीकत में अपने थोड़े लाभ के लिए देश की जनता और प्रकृति को नुकसान पहुँचाने वाले चुनावी पार्टियों के आगे-पीछे घूमते हैं। आज़ाद उनमें से नहीं थे जो देश की जनता के लिए दुःख उठाने की बात आते ही बिल में घुस जाते हैं। आज़ाद वो देशप्रेमी और दुनियाप्रेमी थे जो अपने देश व पूरी दुनिया में आम जनता के जीवन की बेहतरी के लिए अपनी ज़िन्दगी को कुर्बान तक कर देने का माद्दा रखते थे। वो अपनी बात पर सौ प्रतिशत खरे उतरे।

जेएनयू-विरोधी गोलबन्दी की आरएसएस की साज़ि‍शाना मुहिम

आरएसएस के लोगों द्वारा संचालित ”सर्वप्रथम भारत” नाम के एक व्हाट्सऐप ग्रुप से मिले कई संदेशों से पता चला है कि दिल्ली के होलंबी कलां, मेट्रो विहार, बवाना, अलीपुर आदि इलाकों में लगातार मीटिंगें करके ज़हरीला प्रचार चलाया जा रहा है और 21 फरवरी को जेएनयू पर बड़ी संख्या में लोगों को बसों-ट्रकों में भरकर ले जाने की योजना है। इन्‍हीं में से एक व्‍हाट्सऐप मैसेज से यह भी सामने आ गया है कि जेएनयू के आसपास के इलाकों में आरएसएस की शह पर मकानमालिक जेएनयू के छात्र-छात्राओं को कमरों से निकाल बाहर कर रहे हैं।

कौन देशभक्त है और कौन देशद्रोही?

अगर हम आज ही हिटलर के अनुयायियों की असलियत नहीं पहचानते और इनके ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाते तो कल बहुत देर हो जायेगी। हर जुबान पर ताला लग जायेगा। देश में महँगाई, बेरोज़गारी और ग़रीबी का जो आलम है, ज़ाहिर है हममें से हर उस इंसान को कल अपने हक़ की आवाज़ उठानी पड़ेगी जो चाँदी का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुआ है। ऐसे में हर किसी को ये सरकार और उसके संरक्षण में काम करने वाली गुण्डावाहिनियाँ“देशद्रोही” घोषित कर देंगी! सोचिये दोस्तो और आवाज़ उठाइये, इससे पहले कि बहुत देर हो जाये।

जेएनयू पर फासीवादी हमला नहीं सहेंगे! भगवा ब्रिगेड की साज़िशें नहीं चलेंगी!

दक्षिणपंथी छात्र संगठन के गुण्डों-लम्पटों और साथ ही कुछ ग़ैर-ज़िम्मेदार परिधिगत अराजकतावादियों की हरक़तों के कारण पूरे जेएनयू को ‘राष्ट्रद्रोहियों का गढ़’, ‘देशद्रोहियों का प्रशिक्षण केन्द्र’ आदि घोषित किया जा रहा है। जेएनयू के प्रगतिशील छात्र आन्दोलन को न सिर्फ़ इन भगवा तत्वों को बेनक़ाब करना चाहिए वहीं ऐसे तमाम लम्पट अराजकतावादी तत्वों को भी किनारे करना चाहिए जो कि समूचे छात्र आन्दोलन को उसके एजेण्डे से भटका रहे हैं और साम्प्रदायिक फासीवादियों को यह मौका दे रहे हैं कि वे पूरे देश में इस संस्था को बदनाम कर सकें। हमारी लड़ाई यहाँ से सिर्फ़ शुरू होती है कि हम जेएनयू पर फासीवादियों के मौजूदा हमले को नाकामयाब कर दें। लेकिन इसके बाद देश के आम जनसमुदायों में भी हमें इस हमले की पोल खोलनी होगी। कारण यह कि अगर हम लोगों के बीच नहीं जायेंगे तो भगवा ब्रिगेड जायेगी। और जेएनयू इस शहर और इस समाज का अंग है। हमें समाज में भगवा ताक़तों द्वारा जेएनयू की घेराबन्दी का अवसर नहीं देना चाहिए और शहर भर में, बल्कि देश भर में व्यापक प्रचार अभियान के ज़रिये ‘हिटलर के तम्बू’ में बैठे इन फासीवादियों की साज़िशों को बेनक़ाब करना चाहिए।

The Questions we need to answer for Annihilation of Caste!

we also need to abandon the identity politics for the struggle of justice for Rohith Vemula. Have we already not sustained huge damage due to this politics of identity? Has not this identity politics already provided enough fuel to the politics of Fascist and brahminical hegemony? We humbly propose that we need to contemplate these questions with utmost seriousness to advance in the right direction of struggle for justice for Rohith. The need to make the entire project of annihilation of caste an integral part of the class struggle and the project of revolutionary transformation has become more pressing than ever. The revolutionary movement of India has been unsuccessful in carrying out this task and this failure has been responsible for the flourishing and proliferation of identity politics. There cannot be a more opportune time to rectify this mistake and only this can be our true revolutionary tribute to Rohith.

रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या से उपजे कुछ अहम सवाल जिनका जवाब जाति-उन्मूलन के लिए ज़रूरी है!

रोहित वेमुला की संस्थानिक हत्या से उपजे कुछ अहम सवाल जिनका जवाब जाति-उन्मूलन के लिए ज़रूरी है!

नये साल में चुप्पी तोड़ो! परिवर्तन के संघर्ष से नाता जोड़ो!! धार्मिक-जातीय बँटवारे की साज़िशों को नाकाम करो!

आज़ादी और बराबरी के इन मतवालों को आज याद करने का मतलब यही हो सकता है कि हम धर्म और जाति के भेदभाव भूलकर इस देश के लुटेरों के ख़िलाफ़ एकजुट हो जायें और इस ख़ूनी तंत्र को उखाड़ फेंकने की तैयारियों में जुट जायें। अशपफ़ाक-बिस्मिल-आज़ाद और भगतसिंह की विरासत को मानने का मतलब आज यही है कि हम हर क़ि‍स्म के मज़हबी कट्टरपंथ पर हल्ला बोल दें। आज हम सभी नौजवानों और आम मेहनतकशों को यह समझ लेना चाहिये कि हमें धर्म और जाति के नाम पर बाँटने और हमारी लाशों पर रोटियाँ सेंकने का काम आज हर चुनावी पार्टी कर रही है! हमें इनका जवाब अपनी फ़ौलादी एकजुटता से देना होगा। परिवर्तनकामी छात्रों-युवाओं को नये सिरे से अपने क्रान्तिकारी संगठन और जुझारू संघर्ष संगठित करने होंगे और उन्हें मेहनतकशों के संघर्षों से जोड़ना होगा। उन्हें शहीदेआज़म भगतसिंह के सन्देश को याद करते हुए क्रान्ति का सन्देश कल-कारखानों और खेतों-खलिहानों तक लेकर जाना होगा। स्त्रियों की आधी आबादी की जागृति और लामबन्दी के बिना कोई भी सामाजिक परिवर्तन सम्भव नहीं। मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं, बुद्धिजीवियों सभी मोर्चों पर स्त्रियों की भागीदारी बढ़ाना सफलता की बुनियादी शर्त्त है। हमें हर तरह के जातीय-धार्मिक-लैंगिक उत्पीड़न और दमन के ख़िलाफ़ खड़ा होना होगा इस संघर्ष को व्यापक सामाजिक बदलाव की लड़ाई का एक ज़रूरी हिससा बनाना होगा।

काकोरी कांड के शहीदों की याद में नौभास द्वारा देशव्‍यापी कार्यक्रम

काकोरी कांड के शहीदों की याद में ‘इंक़लाबी जन एकजुटता सप्ताह’ का समापन अम्बेडकरनगर के राजे सुल्तानपुर और सिंघल पट्टी मे नुक्कड़ सभाओं , नुक्कड़ नाटक ‘देश को आगे बढ़ाओ’ और ‘कारवां चलता रहेगा’ गीत से किया गया।

नौजवान भारत सभा की उत्‍तर पश्चिमी दिल्‍ली इकाई ने आज चौथे दिन ‘पैग़ाम-ए-इंक़लाब मुहिम’ के तहत नरेला के डीडीए कार्यालय में गुरुशरण सिंह के नाटक ‘हवाई गोले’ पर आधारित ‘देख फकीरे लोकतंत्र का फूहड़ नंगा नाच’ खेला, क्रांतिकारी गीत प्रस्‍तुत किए और पर्चा वितरण किया।

दिल्‍ली में ‘पैग़ाम-ए-इंक़लाब मुहिम’ का तीसरा दिन

आज 28 सितंबर को भगतसिंह के जन्‍मदिवस पर नौजवान भारत सभा की उत्‍तर पश्चिमी दिल्‍ली इकाई द्वारा तीसरे दिन शाहाबाद डेयरी के विभिन्‍न ब्‍लॉकों में ‘पैग़ाम-ए-इंक़लाब मुहिम’ की शुरुआत सुबह प्रभात फेरी में क्रांतिकारी गीतों से की गई। इसके बाद अलग-अलग जगहों पर गुरुशरण सिंह के नाटक ‘हवाई गोले’ पर आधारित ‘देख फकीरे लोकतंत्र का फूहड़ नंगा नाच’ खेला गया और नुक्‍कड़ सभाएं करते हुए पर्चा वितरण किया गया।