आपमें से शायद कुछ ने ही महान जाति-विरोधी योद्धा अय्यंकालि का नाम सुना हो। इसकी वजह समझी जा सकती है। अय्यंकालि उन जाति-विरोधी योद्धाओं में से थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादियों और उनकी सत्ता से समानता का हक़ हासिल करने के लिए एक जुझारू लड़ाई लड़ी और कामयाब हुए। उन्होंने सरकार का इन्तज़ार नहीं किया जो बिरले ही ब्राह्मणवादियों और उच्च जाति के सामन्तों के विरुद्ध जाती थी, क्योंकि ये सामन्ती ब्राह्मणवादी शक्तियों तो शुरू से अन्त तक ब्रिटिश सत्ता के चाटुकार और समर्थक रहीं। अय्यंकालि ने सुधारों के लिए प्रार्थनाएं और अर्जियां नहीं दीं, बल्कि सड़क पर उतर कर ब्राह्मणवादियों की सत्ता को खुली चुनौती दी और उन्हें परास्त भी किया। अय्यंकालि ने सिद्ध किया कि दमित और उत्पीडि़त आबादी न सिर्फ लड़ सकती है, बल्कि जीत भी सकती है। अय्यंकालि का संघर्ष आज के जाति-उन्मूलन आन्दोलन के लिए बेहद प्रासंगिक है। आज अय्यंकालि के संघर्ष को याद करना जाति-उन्मूलन के आन्दोलन को सुधारवाद व व्यवहारवाद के गोल चक्कर से निकालने के लिए ज़रूरी है।
Author: नौजवान भारत सभा
महान क्रान्तिकारी खुदीराम बाेस के शहादत दिवस 11 अगस्त पर…
आज ऐसे ही एक महान क्रान्तिकारी खुदीराम बोस का शहादत दिवस है। मात्र साढ़े 18 साल में खुदीराम बोस की शहादत ने ऐसी ही अमरता का सृजन किया। खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसम्बर 1889 को बंगाल के मिदनापुर जिले के मोहबनी गाँव में हुआ था। खुदीराम बोस का बचपन उस दौर में शुरु हुआ था जब अंग्रेज़ों की बेरहमी और फूट-डालो, राज करो’ की साज़िश ज़ोरों पर थी। वक़्त ने खुदीराम बोस को कम उम्र में ही बड़ा बना दिया था। खुदीराम बोस 1902 में ही यानि 13-14 वर्ष की छोटी सी उम्र में अंग्रेजों के ख़िलाफ़ सक्रिय हो गये थे। सत्येन्द्रनाथ बसु की प्रेरणा से वो गुप्त क्रान्तिकारी संगठन के सदस्य बने।
शहीद चन्द्रशेखर आज़ाद स्मृति अभियान – हमें तुम्हारा नाम लेना है एक अंधेरे दौर में
चन्द्रशेखर आज़ाद जैसे क्रांतिकारियों का मकसद एक शोषणमुक्त, समतामूलक – धर्मनिरपेक्ष समाज का निर्माण करना था। जैसाकि चन्द्रशेखर आज़ाद के साथी भगवानदास माहौर ने लिखा था – “आज़ाद का जन्म हद दर्जे की ग़रीबी, अशिक्षा, अन्धविश्वास और धार्मिक कट्टरता में हुआ था, और फिर वे, पुस्तकों को पढ़कर नहीं, राजनीतिक संघर्ष और जीवन संघर्षमें अपने सक्रिय अनुभवों से सीखते हुए ही उस क्रान्तिकारी दल के नेता हुए जिसने अपना नाम रखा थाः ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ और जिसका लक्ष्य था भारत में धर्म निरपेक्ष, वर्ग-विहीन समाजवादी प्रजातंत्र की स्थापना करना। इसी हिन्दुस्तानी प्रजातंत्र सेना के प्रधान सेनानी “बलराज” के रूप में वे पुलिस से युद्ध करते हुए शहीद हुए। इस प्रकार ये सर्वथा उचित ही है कि चन्द्रशेखर आज़ाद का जीवन और उनका नाम साम्राज्यवादी उत्पीड़न में अशिक्षा, अन्ध-विश्वास, धार्मिक कट्टरता में पड़ी भारतीय जनता की क्रान्ति की चेतना का प्रतीक हो गया है”(यश की धरोहर – राहुल फाउण्डेशन द्वारा प्रकाशित)।
जुझारू जन एकजुटता अभियान – गरीबी, अशिक्षा, बेरोजगारी के कारणों को पहचानो!
शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि आम ग़रीब मेहनतकश जनता का एक ही मज़हब होता हैः वर्गीय एकजुटता! हमें हर प्रकार के धार्मिक कट्टरपंथियों को सिरे से नकारना होगा और उनके ख़िलाफ़ लड़ना होगा! हमें प्रण कर लेना चाहिए कि हम अपने गली-मुहल्लों में किसी भी धार्मिक कट्टरपंथी को साम्प्रदायिक उन्माद भड़काने की इजाज़त नहीं देंगे और उन्हें खदेड़ भगाएँगे!
सावित्रीबाई फुले जयंती के अवसर पर – नई शिक्षाबन्दी के विरोध में नि:शुल्क शिक्षा के लिए एकजुट हों!
सावित्रीबाई ने पहले खुद सिखा व सामाजिक सवालों पर एक क्रांतिकारी अवस्थिति ली। ज्योतिराव की मृत्यु के बाद भी वो अंतिम सांस तक जनता की सेवा करती रहीं। उनकी मृत्यु प्लेगग्रस्त लोगों की सेवा करते हुए हुई। अपना सम्पूर्ण जीवन मेहनतकशों, दलितों व स्त्रियों के लिए कुर्बान कर देने वाली ऐसी जुझारू महिला को हम क्रांतिकारी सलाम करते हैं व उनके सपनों को आगे ले जाने का संकल्प लेते हैं।
काकोरी एक्शन के शहीदों के शहादत दिवस के मौके पर – अमर शहीदों का पैगाम! जारी रखना है संग्राम!!
‘गदर’ आन्दोलन के क्रान्तिकारियों की तरह ही ‘एच.आर.ए.’ और ‘एच.एस.आर.ए.’ का भी यह स्पष्ट मानना था कि धर्म एक व्यक्तिगत मामला होना चाहिए और उसका राज्य मशीनरी व राजनीति में इस्तेमाल बिलकुल भी नहीं होना चाहिए। फाँसी पर लटकाये जाने से सिर्फ़ तीन दिन पहले लिखे ख़त में अशफ़ाक़ उल्ला खान ने देशवासियों को आगाह किया था कि इस तरह के बँटवारे आज़ादी की लड़ाई को कमजोर कर रहे हैं। उन्होंने लिखा ‘सात करोड़ मुसलमानों को शुद्ध करना नामुमकिन है, और इसी तरह यह सोचना भी फिजूल है कि पच्चीस करोड़ हिन्दुओं से इस्लाम कबूल करवाया जा सकता है। मगर हाँ, यह आसान है कि हम सब गुलामी की जंजीरें अपनी गर्दन में डाले रहें।’ इसी प्रकार रामप्रसाद बिस्मिल का कहना था कि ‘यदि देशवासियों को हमारे मरने का जरा भी अफ़सोस है तो वे जैसे भी हो हिन्दू-मुस्लिम एकता स्थापित करें। यही हमारी आखिरी इच्छा थी, यही हमारी यादगार हो सकती है।’
भारत में इंकलाब के कीर्तिस्तम्भ शहीद भगतसिंह के उद्धरण
कानून की पवित्रता तभी तक रखी जा सकती है जब तक वह जनता के दिल यानी भावनाओं को प्रकट करता है। जब यह शोषणकारी समूह के हाथों में एक पुर्ज़ा बन जाता है तब अपनी पवित्रता और महत्व खो बैठता है। न्याय प्रदान करने के लिए मूल बात यह है कि हर तरह लाभ या हित का ख़ात्मा होना चाहिए। ज्यों ही कानून सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा करना बन्द कर देता है त्यों ही जुल्म और अन्याय को बढ़ाने का हथियार बन जाता है। ऐसे कानूनों को जारी रखना सामूहिक हितों पर विशेष हितों की दम्भपूर्ण ज़बरदस्ती के सिवाय कुछ नहीं है।
निजीकरण के विरुद्ध हरियाणा रोडवेज की ऐतिहासिक हड़ताल – देश के सभी लोगों के लिए एक विचारणीय संघर्ष
हम तमाम कर्मचारियों को शानदार हड़ताल के लिये तथा आम जनता को सक्रिय समर्थन के लिये सलाम करते हैं। किन्तु यूनियन जनवाद और वास्तविक सामूहिक नेतृत्व की कमी पर ध्यान दिया जाना चाहिए था तथा साथ ही जनता की सहानुभूति और सहयोग को आन्दोलन की शक्ल नहीं दे पा सकने की कमी को भी दुरुस्त किये जाने की आवश्यकता है। निजीकरण के रूप में जनता पर किया गया यह सरकारी हमला न तो पहला हमला है और न ही आख़िरी। आगे और भी ज़ोर-शोर से हमें संगठित आन्दोलन खड़े करने होंगे। सही विचारधारा और सही संगठन शक्ति के बिना आन्दोलन हार का खारा स्वाद चख सकते हैं और सही विचारधारा पर अमल और सही रूप में संगठित ताकत हमारी जीत की गारण्टी हो सकते हैं।
सार्वजनिक परिवहन को बर्बाद करने की नीतियों के खिलाफ हरियाणा रोड़वेज के कर्मचारियों का संघर्ष
निजीकरण के खिलाफ़ जनता का साझा संघर्ष आज वक्त की ज़रूरत है। एक-एक करके सरकार हर सार्वजनिक क्षेत्र को निजी हाथों में सौंप रही है। शिक्षा-स्वास्थ्य तथा अन्य ज़रूरी सुविधाएँ यदि सरकार हमें नहीं दे सकती तो फिर वह है ही किसलिए? यदि उसका काम मुट्ठी भर धन्नासेठों को ही फ़ायदा पहुँचाना है तो फिर जनता से बेशुमार टैक्स किसलिए निचोड़ा जाता है। रोडवेज का निजीकरण जनता के हितों पर सरकार का सीधा हमला है जिसका मुँहतोड़ जवाब रोडवेज कर्मचारियों के साथ एकता बनाकर जनता को देना चाहिए।
शहीद भगतसिंह के जन्मदिवस (28 सितम्बर) के अवसर पर विशेष सदस्यता अभियान
आज़ादी के जिस पौधे को भगतसिंह जैसे महान शहीदों ने अपने रक्त से सींचा था वो मुरझा रहा है। इन शहीदों का सपना हमारी आँखों में झांक रहा है। आइये इन शहीदों के सपनों के भारत के निर्माण के संघर्ष में प्राण-प्रण से जुट जांय। यह पर्चा सिर्फ नौजवान भारत सभा का परिचय नहीं बल्कि आह्वान है कि आप नौजवान भारत सभा के सदस्य बने और भगत सिंह के विचारों को आगे बढ़ाएं।